धर्म संवाद/ डेस्क : भगवान गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है. किसी भी देवी – देवता की पूजा से पहले भगवान गणेश की ही पूजा होती है. उनके कई नाम है. उन्हें गजानन कहा जाता है. साथ ही विनायक भी. उनका एक नाम एकदंत भी है. और इसके नाम के पीछे एक पौराणिक कथा भी मिलती है.चलिए जानते हैं कि आखिर भगवान गणेश का नाम एकदंत कैसे पड़ा.
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पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय जब परशुराम जी भगवान शिव से मिलने कैलाश पहुंचे. तब भगवान गणेश द्वार पर खड़े थे.परशुराम जी ने उनसे कहा, मुझे भगवान शिव से मिलना है मुझे अंदर जाने दें। गणेश जी ने कहा कि महादेव ध्यान में लीन है और परशुराम को अंदर नहीं जाने दिया. इस पर परशुराम जी को क्रोध आ गया और उन्होनें भगवान गणेश से कहा की अगर मुझे अंदर नहीं जानें दिया गया तो आपको मुझसे युद्ध करना पड़ेगा. यदि में जीता तो आपको मुझे भगवान शिव से मिलने के लिए अंदर जाने देना होगा। भगवान गणेश ने युद्ध की चुनौती स्वीकार की.
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दोनों के बीच में भीषण युद्ध चला। युद्ध के दौरान परशुरान जी ने अपने फरसे से भगवान गणेश पर वार किया और उस फरसे से उनका एक दांत टूट कर वहीं गिर गया. एक दांत टूट कर गिर जाने के कारण भगवान गणेश एकदंत कहलाय.
दूसरी कथा के अनुसार,महर्षि वेदव्यास जब महाभारत लिख रहे थे तब उन्होंने भगवान गणेश की मदद ली. उस समय उन्होंने लिखने के पहले शर्त रखी कि महर्षि कथा लिखवाते समय एक पल के लिए भी नहीं रुकेंगे. वेदव्यास मान गए पर फिर महर्षि ने भी एक शर्त रख दी कि गणेश भी एक-एक वाक्य को बिना समझे नहीं लिखेंगे .इस तरह गणेशजी के समझने के दौरान महर्षि को सोचने का अवसर मिल जायेगा. पर श्री गणेश तो स्वयं विद्या और बूढी के देवता थे. ऐसा कुछ नहीं हुआ. महर्षि बोलते गए और गणेश जी लिखते गए. कलम से लिखने में उन्हें देर हो रही थी तभी उन्होंने अपना एक दांत तोड़कर उसी दांत से लिखना शुरू कर दिया. उसके बाद से ही उनका एक नाम एकदंत पड़ा.