धर्म संवाद / डेस्क : भारत मंदिरों का देश माना जाता है। भारत के कई मंदिर बेहद ही अद्भुत है। उन्मे से कुछ मंदिर ऐसे है जो सालों भर बंद रहते हैं और कुछ विशेष दिनों में खुलते हैं । उन्मे से ही एक मंदिर है जिसके कपाट सिर्फ नाग पंचमी के दिन खुलते हैं । इस मंदिर को नागचंद्रेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है।
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पौराणिक कथा के अनुसार, सर्पराज तक्षक ने भगवान शिव को मनाने के लिए कठोर तपस्या की थी। ऐसे में भोले बाबा ने प्रसन्न होकर अमरत्व का वरदान दिया था। कहा जाता है कि तब से तक्षक ने शिव जी के पास रहना शुरू कर दिया। लेकिन भोले बाबा को ये अच्छा नहीं लगा,क्योंकि वह एकांत में ध्यान करना पसंद करते हैं। राजा तक्षक ने इस मंशा को जान लिया और महादेव के एकांत में किसी भी प्रकार का विघ्न ना हो,इसलिए साल में एक बार ही उनके दर्शन करने आने लगे। इसी के कारण इस मंदिर को नाग पंचमी के दिन ही खोला जाता है। बाकी समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के तीसरे मंजिल पर भगवान नागचंद्रेश्वर महादेव विराजमान हैं। ये मंदिर साल में केवल एक बार नाग पंचमी के दिन खुलता है। रात 12 बजे मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। यहाँ की प्रतिमा दुर्लभ है। यहाँ भोलेनाथ दशमुखी फन फैलाए सर्प के आसन में मां पार्वती के साथ अपने पूरे परिवार के साथ विराजित है। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा दूसरी नहीं है। यह एक ऐसा एकमात्र मंदिर माना जाता है जहां भगवान विष्णु की जगह शिव जी सर्प की शय्या पर विराजित हैं।बताया जाता है इस अद्भुत मूर्ति को नेपाल से लाया गया था।
माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के आसपास इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उसी समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था।
इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है। मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है। नाग पंचमी के दिन यहां हजारों की संख्या में भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। नागपंचमी को दोपहर 12 बजे कलेक्टर पूजा करते हैं । यह सरकारी पूजा होती है। यह परंपरा रियासतकाल से चली आ रही है।