धर्म संवाद / डेस्क : भारत के प्राचीन कुछ मंदिर ऐसे है जो लूटेरों तथा आक्रमणकारियों का शिकार हुए। कुछ मंदिरों को हिन्दू राजाओं तथा रानियों द्वारा बचाया गया तो कुछ मंदिर स्वयं ईश्वर की शक्ति से बच गए । ऐसा ही एक महादेव का मंदिर है गैवीनाथ धाम। इस मंदिर के शिवलिंग में मुग़ल बादशाह औरंगजेब द्वारा आक्रमण के निशान आज भी मौजूद है ।
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यह मंदिर मध्य प्रदेश के सतना जिले से 35 किमी दूर बिरसिंहपुर नामक कस्बे में स्थित है। इस शिवलिंग को उज्जैन महाकाल का दूसरा उपलिंग भी कहा जाता है। त्रेतायुग में यह स्थान देवपुर कहलाता था। देवपुर के वीर सिंह महाकाल के अनन्य भक्त थे। वे घोड़े पर सवार होकर उज्जैन जाया करते थे महाकाल के दर्शन करने । सालों तक ऐसा ही चलता रहा लेकिन जब राजा वृद्ध हुए तब उन्होंने महाकाल से अपनी व्यथा बताई। तब महाकाल ने राजा के स्वप्न में देवपुर में ही दर्शन देने की बात कही। उसी समय नगर के ही गैवी यादव नामक व्यक्ति के यहाँ चूल्हे से शिवलिंग निकला लेकिन गैवी की माँ उस शिवलिंग को दोबारा जमीन के अंदर कर दिया करती थी ।
महाकाल एक दिन फिर से राजा वीर सिंह के स्वप्न में आए और बताया कि वह जमीन से निकलना चाहते हैं लेकिन गैवी की माँ उन्हें फिर जमीन में धकेल देती है। उसके बाद राजा वीर सिंह स्वयं गैवी के घर पहुंचे और जिस स्थान से शिवलिंग चूल्हे से बाहर आने का प्रयास कर रहा था, उस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया । यह शिवलिंग गैवी के घर से निकला था इसलिए इस मंदिर का नाम गैविनाथ धाम पड़ा।
बताया जाता है कि 1704 में मुगल आक्रांता औरंगजेब हिन्दू मंदिरों को नष्ट करने के क्रम में यहाँ पहुँचा था। उसने अपनी सेना को शिवलिंग नष्ट करने का आदेश दिया। उसकी सेना ने शिवलिंग को हथौड़े और छेनी से तोड़ने का प्रयास किया । कहा जाता है कि शिवलिंग पर पाँच प्रहार किए गए थे। पहले प्रहार में शिवलिंग से दूध निकला, दूसरे प्रहार में शहद, तीसरे प्रहार में खून और चौथे प्रहार में गंगाजल। जैसे ही औरंगजेब के सैनिकों ने शिवलिंग पर पाँचवाँ प्रहार किया, लाखों की संख्या में भँवर (मधुमक्खी) निकली। औरंगजेब और उसकी पूरी सेना तितर-बितर हो गई और किसी तरह अपनी जान बचाकर भागी। समय के साथ-साथ शिवलिंग के 2 घाव तो भर गए मगर आज भी शिवलिंग तीन हिस्सों में विभाजित दिखता है।
आज भी गैवीनाथ धाम में शिवलिंग पर तलवार के निशान हैं और उसी खंडित शिवलिंग की ही पूजा होती है। स्थानीय निवासी मानते हैं इसी शिवलिंग के उनके शहर और उनकी माँ-बेटियों की रक्षा भी हो सकी। यही कारण है कि पूरे विंध्य क्षेत्र में गैवीनाथ धाम का महत्व भारत के किसी भी बड़े मंदिर की भाँति ही है। कहा जाता है कि जमीन के अंदर कितनी गहराई तक शिवलिंग है, इसके विषय में कोई नहीं जानता। स्थानीय मान्यता है कि चारधाम धाम यात्रा तभी पूरी मानी जाती है, जब चार धामों का जल भगवान गैवीनाथ को अर्पित किया जाए।