धर्म संवाद / डेस्क : होली सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है. होली से पहले होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन के लिए पहले से ही लकड़ियों का इंतजाम कर लिया जाता है. लेकिन कुछ पेड़ ऐसे होते हैं जो काफी पूज्यनीय होते है, उन पेड़ों की लकड़ियों को होलिका दहन के लिए प्रयोग में नहीं लेना चाहिए.चलिए जानते हैं वो लकडियाँ कौन –कौन सी है.
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पीपल, बरगद, शमी, आंवला, नीम, आम, केला और बेल की लकड़ियों का प्रयोग होलिका दहन के दौरान कभी नहीं किया जाना चाहिए.सनातन धर्म में इन पेड़ों को पवित्र माना गया है. इनकी पूजा की जाती है और इनकी लकड़ियों का प्रयोग यज्ञ, अनुष्ठान आदि शुभ कार्यों के लिए किया जाता है. होलिका दहन को जलते हुए शरीर का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इस कार्य में इन लकड़ियों का उपयोग नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन में आप उन लकड़ियों का प्रयोग कर सकते हैं जो सूख कर अपने आप गिर जाती हैं जैसे गूलर और अरंडी के पेड़ की लकड़ी . ऐसे में आपको होलिका दहन के लिए किसी भी हरे भरे पेड़ की लकड़ी को काटने की जरूरत नहीं होती.आप खरपतवार या किसी अन्य पेड़ की सूखी लकड़ी जो पहले से टूटी पड़ी हो, उसका भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके अलावा गोबर के उपलों से भी होलिका दहन किया जा सकता है.
आपको बता दे जब एरंड और गूलर के पत्ते झड़ने लगते हैं और उन्हें ना जलाया जाए तो इनमें कीड़ा लग जाता है. इन्हें जलाने से हवा शुद्ध होती है. फाल्गुन के महीने में मच्छर और बैक्टीरिया पनपते हैं, ऐसे में एरंड और गूलर की लकड़ी जलाने से मच्छर व बैक्टीरिया खत्म होते हैं और हवा भी शुद्ध होती है.