भगवान विष्णु को मिले हुए श्राप

By Tami

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भगवान विष्णु को मिले हुए श्राप

धर्म संवाद / डेस्क : हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में अनेकों वरदान और श्रापों का वर्णन मिलता है। ये श्राप ज्यादातर मनुष्यों एवं असुरों को दिए गए थे परंतु सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु को भी कई श्राप मिले थे। उनके अवतार लेने के पीछे भी श्राप था। चलिए आपको बताते हैं भगवान विष्णु को मिले कुछ श्राप।

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नारद का भगवान विष्णु को श्राप- शिवपुराण के अनुसार एक बार नारद जी को बहुत अहंकार हो गया था और उसी को खतम करने के लिए नारायण ने एक माया से शहर का निर्माण किया । माया के वक्ष में आकर नारद जी उस शशर में पहुच गए और वहाँ के राजा की बेटी जो की स्वयं श्रीलक्ष्मी थी उन पर मोहित हो गए । उन्होंने विष्णु से मदद मांगी  और कहा कि उन्हे हरिमुख चाहिए । हरी का एक और अर्थ वानर होता है तो भगवान विष्णु ने उनका मुह वानर समान कर दिया । नारद जी यही रूप लेकर स्वयंवर गए.  इसके बाद नारद ने देखा कि कन्या ने जिसके गले में वरमाला डाली वह खुद ही श्रीहरि हैं। तब नारद ने उन्हें श्राप दिया कि जिस तरह तुम मेरी होने वाली पत्नी को ले गए और मैं वियोग-विलाप कर रहा हूं, एक दिन तुम्हारी भी पत्नी का हरण होगा और तुम विलाप में वन-वन भटकोगे। इस तरह भगवान विष्णु को उनके 7 वे जन्म में श्रीराम रूप में अपनी पत्नी सिता का वियोग सहना पड़ा।

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महर्षि भृगु का श्राप – महर्षि भृगु ने भगवान विष्णु को श्राप दिया था कि वे पृथ्वी पर कई जन्म लें और बार-बार जन्म-मृत्यु की पीड़ा झेलें। दरअसल, भृगु ऋषि  एक दिन वैकुंठ पहुंचे और देखा कि विष्णु  विश्राम कर रहे थे । इस पर क्रोधित भृगु ऋषि ने विष्णु जी की छाती पर लात मार दी। भृगु की लात खाने के बाद भी भगवान विष्णु ने उठकर उन्हें सम्मान दिया और उनसे शांति से पूछा कि क्या उन्हें कोई कष्ट तो नहीं हुआ। इसके बाद मार्हरीशी ने उन्हे श्राप दिया कि वे पृथ्वी पर कई जन्म लें और बार-बार जन्म-मृत्यु की पीड़ा झेलें। ऐसा भी माना जाता है कि भगवान विष्णु ने एक स्त्री को मृत्युदंड देकर अपने धर्म का उल्लंघन किया था।

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तुलसी का श्राप – पौराणिक कथा के मुताबिक, पूर्व जन्म में तुलसी का नाम वृंदा था। वह जालंधर नाम के एक राक्षस की पत्नी थीं। जालंधर भगवान शिव का ही अंश था, लेकिन बुरे कर्मों के कारण उसका जन्म राक्षस कुल में हुआ था।  उससे हर कोई बहुत परेशान था।  वृंदा एक पतिव्रता पत्नी थीं और उनके तप से कोई भी राक्षस का वध नहीं कर पा रहा था। राक्षस जालंधर की मौत के लिए वृंदा का पतिव्रत धर्म खत्म होने बेहद जरूरी था। असुरराज जालंधर का अत्याचार बढ़ने लगा तो जनकल्याण के लिए भगवान विष्णु ने राक्षस जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिव्रता धर्म को तोड़ दिया। जब वृंदा को यह जानकारी हुई कि भगवान विष्णु ने उनका पतिव्रता धर्म को तोड़ दिया तो उन्होंने भगवान विष्णु को पठार हो जाने का श्राप दे दिया। वृंदा के श्राप से रुष्ट होकर विष्णु जी ने बताया कि वो उसका राक्षस जालंधर से बचाव कर रहे थे और उन्होंने वृंदा को श्राप दिया कि वो लकड़ी बन जाए। इसके बाद ही वे तुलसी रूप में परिवर्तित हुई एवं भगवान विष्णु शालिग्राम रूप में ।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .