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इस जगह माँ यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण को ऊखल से बांधा था

By Tami

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इस जगह माँ यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण को ऊखल से बांधा था

धर्म संवाद / डेस्क : भगवान श्रीकृष्ण की बाल्य लीलाएँ हमेशा ही भक्तों के दिलों में विशेष स्थान रखती हैं। इनमें से एक प्रमुख लीला ऊखल बंधन की है, जो गोकुल महावन में स्थित ऊखल बंधन प्राचीन मंदिर से जुड़ी हुई है। यह वही स्थान है जहाँ माँ यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण को ऊखल (चिउड़े पीसने वाली मशीन) से बांध दिया था। यह घटना श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की प्रसिद्ध और आनंदपूर्ण लीलाओं में से एक है, जिसमें उनकी शरारतों और भगवान की दिव्यता का अद्भुत मेल दिखाई देता है।

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण बचपन में अत्यंत नटखट और शरारती थे। वह हमेशा अपनी माँ यशोदा के घर में हर जगह माखन फैला देते थे। एक दिन, श्रीकृष्ण ने घर में रखी मक्खन की मटकियाँ तोड़ दीं और घर में माखन का मेला लगा दिया। इससे यशोदा माँ बहुत नाराज हुईं और उन्होंने श्रीकृष्ण को पकड़कर उन्हें ऊखल से बांधने का निर्णय लिया। उन्होंने एक रस्सी ली, लेकिन वह दो अंगुल छोटी पाई गई। जब उन्होंने दूसरी रस्सी ली, तो वही हुआ – रस्सी फिर से दो अंगुल छोटी पाई गई।

यह रस्सी दो अंगुल छोटी क्यों हो रही थी? इसके कुछ प्रमुख कारण हैं:

भक्त का अहंकार: जब भक्त अहंकार करता है कि वह भगवान को बांध सकता है, तो भगवान भक्त से कुछ दूर हो जाते हैं। यह दो अंगुल की कमी इस बात को दर्शाती है कि एक अंगुल यशोदा के अहंकार की कमी और एक अंगुल भगवान श्रीकृष्ण की दूरी से संबंधित थी।

यमलार्जुन (नलकूबर और मणिग्रीव) का उद्धार: इस घटना के दौरान भगवान को दो वृक्षों, यमलार्जुन (नलकूबर और मणिग्रीव) का उद्धार करना था। यह घटना इस उद्धार को भी दर्शाती है, इसीलिए रस्सी दो अंगुल छोटी पाई गई।

नाम और रूप का बंधन: भगवान श्रीकृष्ण, जो स्वयं परम ब्रह्म हैं, नाम और रूप के बंधन से परे हैं। इसलिए दो अंगुल की कमी यह बोध कराती है कि भगवान श्रीकृष्ण इन बंधनों से मुक्त हैं।

आखिरकार, भगवान श्रीकृष्ण ने उखल से बंधे होने के बावजूद घर के आंगन में रेंगते हुए अपनी लीलाएँ जारी रखीं। इस दौरान, उनकी नजर दो अर्जुन के पेड़ों पर पड़ी, जो दरअसल नल कुबेर और मणि ग्रीव थे। इन दोनों को नारद जी के श्राप के कारण पेड़ बनना पड़ा था। श्रीकृष्ण उन पेड़ों के बीच से रेंगते हुए गुज़रे और जब उन्होंने उखल को खींचने की कोशिश की, तो दोनों पेड़ों के तने उखड़ गए। इस प्रकार श्री कृष्ण ने नल कुबेर और मणि ग्रीव का उद्धार किया और उन्हें उनके पूर्व जन्म के श्राप से मुक्त किया।

ऊखल बंधन मंदिर का स्थान

यह प्राचीन मंदिर गोकुल महावन में स्थित है, जो मथुरा जंक्शन से लगभग 15 किलोमीटर दूर है और यमुना नदी के पास स्थित है। इस मंदिर में एक ऊखल रखा गया है, जिस पर श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का चित्रण किया गया है। मंदिर के परिसर में यमलार्जुन के दो वृक्ष भी स्थित हैं, जिनका उद्धार भगवान श्रीकृष्ण ने किया था।

यह स्थान भक्तों के लिए बहुत ही पवित्र है और यहाँ आने से उन्हें श्री कृष्ण के बालपन की लीलाओं का अनुभव होता है। यहाँ एक विशेष मान्यता है कि जो लोग कार्तिक महात्म करते हैं, वे इस स्थान पर दीपदान करते हैं, तो उनका महत्त्वपूर्ण धार्मिक कार्य पूरा हो जाता है। इसके साथ ही यहाँ गोदान का भी विशेष महत्व है, क्योंकि मान्यता है कि जब भगवान श्री कृष्ण गोकुल छोड़कर चले गए थे, तो उन्होंने अपनी सारी गायों को यहीं पर दान किया था।

यहाँ भगवान श्री कृष्ण को दामोदर के नाम से जाना जाता है । संस्कृत में ‘दामा’ का अर्थ रस्सी और ‘उदार’ का अर्थ पेट होता है। यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि माँ यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण को अपने वात्सल्य रस्सी से बांध दिया था।

ऊखल बंधन प्राचीन मंदिर गोकुल महावन में स्थित यह स्थान भगवान श्री कृष्ण की दिव्य बाल लीलाओं का प्रतीक है। यहाँ आने वाले भक्तों को भगवान के बचपन के अद्भुत खेलों और उनकी दिव्यता का दर्शन होता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है और भक्तों के लिए एक पवित्र स्थल है।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .

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