बच्चे के जन्म पर सूतक क्यों लगता है? जाने धार्मिक और वैज्ञानिक कारणों की सरल व्याख्या

By Tami

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period of mourning after the birth of a child

धर्म संवाद / डेस्क: भारत में बच्चे के जन्म के साथ कई सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराएँ जुड़ी होती हैं। इन्हीं में से एक है सूतक या सोबड़, जिसे लेकर अक्सर भ्रम रहता है। क्या यह सिर्फ धार्मिक नियम है? क्या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक आधार भी है? इस लेख में हम दोनों पहलुओं को सरल और स्पष्ट रूप में समझते हैं।

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धार्मिक दृष्टि: जन्म के बाद ‘अशुद्धि’ की अवधारणा

हिंदू धर्म में जन्म और मृत्यु को सूक्ष्म रूप से अशुद्धि से जोड़ा गया है।
बच्चे के जन्म के दौरान:

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  • माँ के शरीर से रक्त,
  • विभिन्न शारीरिक तत्व,
  • और दर्द व थकान

बाहर आते हैं। धार्मिक ग्रंथों में इसे ऐसा समय बताया गया है जब प्रसूता को शारीरिक और मानसिक रूप से विश्राम की आवश्यकता होती है। इसी वजह से:

  • 10 दिनों तक पूजा-पाठ और धार्मिक कार्य रोक दिए जाते हैं।
  • घर के सदस्यों को मंदिर जाने से भी रोका जाता है।
  • इस अवधि को “सूतक काल” कहा जाता है।

10 दिन पूरे होने पर घर में:

  • स्नान,
  • शुद्धिकरण,
  • हवन आदि

किए जाते हैं, जिसे “सूतक शुद्धि” माना जाता है। इसके बाद धार्मिक कार्य फिर प्रारंभ होते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टि: संक्रमण से बचाव और स्वास्थ्य सुरक्षा

पुराने समय में अस्पताल, दवाइयाँ और स्वच्छता के आधुनिक साधन उपलब्ध नहीं थे। प्रसूता और नवजात शुरू के दिनों में सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं। इसलिए समाज ने इस अवधि को धार्मिक रूप दिया ताकि सभी लोग इसे गंभीरता से मानें।

वैज्ञानिक कारण:

1. संक्रमण का सबसे अधिक खतरा

नवजात का इम्यून सिस्टम जन्म के समय बेहद कमजोर होता है। अधिक लोगों का संपर्क संक्रमण फैला सकता है।

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2. मां को पूर्ण आराम की जरूरत

प्रसव में अत्यधिक ऊर्जा खर्च होती है। 10–12 दिन शरीर की रिकवरी के लिए आवश्यक माने गए।

3. घर में भीड़ से बचाव

महमानों का आना-जाना बढ़ने से कीटाणु फैलने का जोखिम रहता है।

4. स्वच्छ वातावरण बनाए रखना

सूतक काल के नियम घर में सफाई, सीमित संपर्क और सावधानी के लिए बनाए गए थे।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सूतक का मूल उद्देश्य धार्मिक कर्तव्य से अधिक स्वास्थ्य सुरक्षा था।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .