शनि देव को प्रसन्न करने के लिए क्यों करना चाहिए हनुमान जी की पूजा

By Tami

Published on:

शनि देव को प्रसन्न करने के लिए क्यों करना चाहिए हनुमान जी की पूजा

धर्म संवाद / डेस्क : शनिवार का दिन शनि देव को समर्पित है। आपने देखा होगा जहां भी शनिदेव का मंदिर होता है, वहां आस पास हनुमान जी भी जरूर विराजमान होते हैं। शनिवार के दिन शनिदेव के साथ साथ हनुमान जी की भी पूजा की जाती है। कहा जाता है हनुमान जी की पूजा करने से शनि देव की वक्र दृष्टि से बचा सकता है। इसके पीछे 2 पौराणिक कथाएँ मिलती है।

यह भी पढ़े : क्यों चढ़ता है शनिदेव को तेल

कहते हैं त्रेतायुग में रावण ने ग्रह – नक्षत्रों को बंदी बना कर रखा था। वही उन्होंने शनि देव को उल्टा लटका कर कारागार में बंद रखा था। जब माता सीता को ढूंढ़ने के लिए हनुमान जी लंका पहुंचे तब हालात कुछ ऐसे हुए कि उनके पूँछ पर आग लगा दी गयी। उसके बाद हनुमान जी ने पूरी लंका पर आग लगा दी और हो गया लंका दहन। उस वक़्त उन्होंने सभी ग्रहों और शनि देव को रावण की कैद से मुक्त कराया था। इससे प्रसन्न होकर शनि देव ने हनुमान जी से एक वर मांगने को कहा। तब हनुमान जी ने वरदान मांगा कि, जो भक्त शनिवार के दिन मेरी पूजा करेगा उसे आप कभी कष्ट नहीं देंगे। इसके बाद से ही शनिवार के दिन शनि देव के साथ बजरंगबली की पूजा करने का विधान है।

WhatsApp channel Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

दूसरी कथा के मुताबिक, एक बार हनुमान जी तपस्या में लीं थे और उस वक़्त शनि देव अपने शक्ति के घमंड में चूर थे उन्होंने हनुमान जी को ललकारा, “हे वानर देख कौन तेरे सामने आया है? उठो और मुझसे युद्ध करो।” हनुमान जी ने कहा, आप कहीं और जाएं, मेरे प्रभु सिमरन में बाधा न डालें। शनिदेव को यह बात पसंद नहीं आई और वह ध्यान लगाने जा रहे हनुमान जी की भुजा पकड़ कर उन्हें अपनी ओर खींचने लगे। हनुमान जी को लगा जैसे उनकी भुजा को किसी ने दहकते अंगारों पर रख दिया हो। उन्होंने एक झटके से अपनी भुजा छुड़ा ली और जब शनिदेव ने विकराल रूप धारण कर उनकी दूसरी भुजा पकड़ने की कोशिश की तब हनुमान जी को भी क्रोध आ गया। उन्होंने शनि देव को अपनी पूंछ में लपेट लिया।

शनिदेव का क्रोध तब भी कम नहीं हुआ। शनिदेव बोले तुम तो क्या तुम्हारे प्रभु राम भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। इस पर हनुमान जी ने पूंछ में लिपटे शनिदेव को पहाड़ों एवं वृक्षों पर जोर-जोर से पटक कर रगड़ना शुरू कर दिया तो शनिदेव की हालत खराब हो गई। तब शनिदेव ने देवताओं से मदद मांगी मगर कोई देवता उनकी मदद को नहीं आया। तब शनिदेव को अपनी भूल का एहसास हुआ और बोले वानर राज, दया करें, मुझे अपनी उद्दंडता एवं अहंकार का फल मिल गया है, मुझे क्षमा करें। मैं भविष्य में आपकी छाया से दूर रहूंगा। तब हनुमान जी बोले, मेरी छाया ही नहीं, मेरे भक्तों की छाया से भी दूर रहना होगा। शनिदेव ने हनुमान जी को यह वचन दिया।

See also  केदारनाथ को क्यों कहा जाता है जागृत महादेव

शनिदेव को पहाड़ों एवं वृक्षों से टकराने के बाद उन्हें काफी चोटें आ गई थीं जिससे शनिदेव परेशान थे तब हनुमान जी ने शनि देव के घावों पर सरसों का तेल लगाया जिससे उनकी पीड़ा समाप्त हो गई। तब शनिदेव ने कहा कि जो सच्चे मन से शनिवार के दिन मुझ पर तेल चढ़ाएगा या पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएगा उसे शनि संबंधित सभी कष्टों से मुक्ति मिलेगी।  

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .