Do you want to subscribe our notifications ?

भीष्म ने क्यों नहीं रोका द्रौपदी का चीरहरण

By Tami

Published on:

भीष्म ने क्यों नहीं रोका द्रौपदी का चीरहरण

धर्म संवाद / डेस्क : महाभारत में भीष्म पितामह को एक ही बहुत ही महत्वपूर्ण और सम्मानित पात्र माना जाता है। भीष्म पितामह की काही बात कोई नहीं टालता था। वे एक महान योद्धा और न्यायप्रिय पुरुष थे। इसके बावजूद भी उन्होंने द्रौपदी के चीरहरण के समय कुरु-वंश की पुत्रवधू के साथ हुए अपमान के विरुद्ध कुछ नहीं कहा । उन्होंने उस वक्त मौन धारण कर लिया जिस वक्त उन्हे आवाज उठानी चाहिए थी। आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया। इस प्रश्न का उत्तर उन्होंने महाभारत के युद्ध के वक्त बाणों की शैया में लेट कर दिया था।

यह भी पढ़े : महाभारत युद्ध में कितने व्यूह रचे गए थे

जब कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर पितामह भीष्म बाणों की शैया पर लेटे हुए थे तो उस वक्त द्रौपदी ने आकर भीष्म से पुछा था कि आप तो महामहिम हैं, आपने दुर्योधन और दुशासन को क्यों नहीं रोक। उनके द्वारा किए गए इस महापाप को क्यों होने दिया। आपके सामने कुरु-वंश की कूलवाढू का अपमान हो रहा था आप फिर भी मौन खड़े थे। आखिर ऐसा क्यों। तब पितामह भीष्म ने कहा, “मैं जानता था कि एक दिन मुझसे यह सवाल जरूर पूछा जाएगा। मुझे इस बात का अंदाजा था। मैं आज तुम्हें सत्य बताता हूं कि दुर्योधन द्वारा किए गए इतने बड़े अपराध को देखते हुए भी मैं चुप क्यों था।” जिस समय मैं कौरवों की राजसभा में था, मैं दुर्योधन का दिया अन्न खा रहा था, जिसे दुर्योधन ने पाप कर्मों से कमाया था। इस कारण से मैं दुर्योधन का अन्न, नमक खाने की वजह से उसके अधीन हो गया था। उसका ऋणी हो गया था ।

हम जिस भी इंसान का अन्न खाते हैं, कहीं न कहीं उसका प्रभाव हमारे मन मतिष्क पर भी पड़ता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।” पितामह भीष्म का मौन धारणा उनके स्वार्थ से नहीं, धर्म की रक्षा के लिए था। भीष्म जानते थे कि आगे कलियुग का आगमन होने वाला है। इस कारण से महाभारत में हुई घटनाएं यहीं पर समाप्त नहीं होंगी बल्कि बड़े स्तर पर मनुष्य पाप करता रहेगा ।

कुरुक्षेत्र में हुए युद्ध का प्रभाव युगों तक रहेगा। बुरे लोगों में और भी ज्यादा नकारात्मकता आती जाएगी। आज के समय में भी यही देखने को मिल रहा है। भाई-भाई का दुश्मन बन रहा है, स्त्री का अपमान किया जा रहा है और लोग सत्य का साथ नहीं देते। अन्न का कर्तव्य निभाना किसी स्त्री के मान-सम्मान से बढ़कर नहीं हो सकता। अन्न का कर्तव्य निभाना किसी स्त्री के मान-सम्मान से बढ़कर नहीं हो सकता। परंतु फिर भी लोग जहां पेट भर रहे है साथ उन्ही का दे रहे हैं फिर चाहे वो सही हो या गलत।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .

Exit mobile version