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कौन थे नारद मुनि, जाने उनके जन्म और देवर्षि बनने की कथा

By Tami

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नारद मुनि

धर्म संवाद / डेस्क : नारद मुनि को भगवान विष्णु का परम भक्त माना जाता है।  देवर्षि नारद मुनि विभिन्न लोकों में यात्रा करते थे, जिनमें पृथ्वी, आकाश और पाताल शामिल है ताकि देवी-देवताओं तक संदेश और सूचना का संचार किया जा सके।  हिन्दू शास्त्रों के अनुसार नारद को ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक माना गया है। चलिए जानते हैं उनके जीवन की कहानी।

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हिन्‍दू मान्‍यताओं के अनुसार नारद मुनि का जन्‍म सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी की गोद से हुआ था। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार ये ब्रह्मा के कंठ से उत्पन्न हुए थे। देवर्षि नारद को महर्षि व्यास, महर्षि वाल्मीकि और महाज्ञानी शुकदेव का गुरु माना जाता है। कहते हैं कि दक्ष प्रजापति के 10 हजार पुत्रों को नारदजी ने संसार से निवृत्ति की शिक्षा दी। देवताओं के ऋषि होने के कारण नारद मुनि को देवर्षि कहा जाता है। कहते हैं कि ब्रह्मा से ही इन्होंने संगीत की शिक्षा ली थी। भगवान विष्णु ने नारद को माया के विविध रूप समझाए थे। नारद अनेक कलाओं और विद्याओं में निपुण हैं। कई शास्त्र इन्हें विष्णु का अवतार भी मानते हैं और इस नाते नारदजी त्रिकालदर्शी हैं।

नारद मुनि वेदांतप्रिय, योगनिष्ठ, संगीत शास्त्री, औषधि ज्ञाता, शास्त्रों के आचार्य और भक्ति रस के प्रमुख माने जाते हैं। देवर्षि नारद को श्रुति-स्मृति, इतिहास, पुराण, व्याकरण, वेदांग, संगीत, खगोल-भूगोल, ज्योतिष और योग जैसे कई शास्‍त्रों का प्रकांड विद्वान माना जाता है। भगवान विष्णु की कृपा से ये सभी युगों और तीनों लोकों में कहीं भी प्रकट हो सकते हैं। यह भी माना जाता है कि लघिमा शक्ति के बल पर वे आकाश में गमन किया करते थे। लघिमा अर्थात लघु और लघु अर्थात हलकी रुई जैसे पदार्थ की धारणा से आकाश में गमन करना। एक थ्योरी टाइम ट्रेवल की भी है। प्राचीनकाल में सनतकुमार, नारद, अश्‍विन कुमार आदि कई हिन्दू देवता टाइम ट्रैवल करते थे।

नारद पुराण में नारद जी के जीवन के बारे में संपूर्ण वर्णन है, यह ग्रन्थ के पूर्वखंड में 125 अध्याय और उत्तरखण्ड में 182 अध्याय हैं। श्रीमद्भागवत और वायुपुराण के अनुसार नारद जी का जन्म ब्रह्मा जी की जंघा से हुआ था। इन्हें वेदों के संदेशवाहक कहा गया है। मान्यता है कि वीणा का आविष्कार भी नारद जी ने ही किया था।

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नारद जी के बारे में उनके पुनर्जन्म की कथा भी प्रचलित है। कहते हैं नारद जी, पूर्व जन्म में ‘उपबर्हण’ नाम के गंधर्व थे। उन्हें अपने रूप पर अभिमान था। एक बार जब ब्रह्मा की सेवा में अप्सराएं और गंधर्व गीत और नृत्य से जगत्सृष्टा की आराधना कर रहे थे, तब उपबर्हण स्त्रियों के साथ श्रृंगार भाव से वहां आए। उपबर्हण का यह अशिष्ट आचरण देख कर ब्रह्मा कुपित हो गये और उन्होंने उसे ‘शूद्र योनि’ में जन्म लेने का शाप दे दिया। श्राप के चलते उपबहर्ण को अगले जन्म में एक शूद्र दासी ने जन्म दिया। उनका नाम नंद रखा गया। नंद को बचपन से ब्राह्मणों की सेवा में लगा दिया गया था। वे तन-मन से ब्राह्मणों की सेवा में लीन हो गए। इससे उनके पूर्व जन्म के पाप धीरे-धीरे धुलते गए। समय के साथ उनका मन प्रभु की भक्ति में लगने लगा। वे भगवान विष्णु की भक्ति में लीन हो गए। इससे खुश होकर खुद प्रभु ने उन्हें दर्शन दिए और नंद को ब्रह्मपुत्र होने का वरदान मिला। इस तरह वे देवर्षि बन गए।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .

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