धर्म संवाद / डेस्क : श्री किशोरी राधा जी के बारे में कहा जाता है कि कि वह बरसाना की थीं। लेकिन, हकीकत है कि उनका जन्मथ बरसाना में नहीं हुआ था। तो और वे श्री कृष्ण से उम्र में बड़ी थीं। इसके अलावा वे कमल के फूल पर प्रकट हुई थी। मानव जन्म नहीं हुआ था उनका। विष्णु, पद्म पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में देवी राधा जन्म से जुड़ी कथा का उल्लेख मिलता है।
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पद्म पुराण के अनुसार राधा वृषभानु नामक एक वैष्य गोप की पुत्री थीं। उनकी माता का नाम कीर्ति था। इस वजह से उनका एक नाम वृषभानु कुमारी भी था । बरसाना राधा के पिता वृषभानु का निवास स्थान था। कुछ विद्वान मानते हैं कि राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में हुआ था और बाद में उनके पिता बरसाना में बस गए।
कहते हैं द्वापर में रावल ग्राम से सट कर यमुना बहती थी। राधा की मां कृति यमुना में स्नावन करते हुए अराधना करती थी और पुत्री की लालसा रखती थी। एक दिन पूजा करते समय यमुना से कमल का फूल प्रकट हुआ जिससे रोशनी निकल रही थी। इसमें छोटी बच्ची् का नेत्र बंद था। कहा जाता है कि श्री राधा ने पहली बार अपनी आंखे तब खोली थी जब उन्होंने श्री कृष्ण को देखा था।
ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार, राधा श्रीकृष्ण के साथ गोलोक में रहती थीं। एक बार उनकी अनुपस्थिति में श्रीकृष्ण अपनी दूसरी पत्नी विरजा के साथ घूम रहे थे। तभी राधा आ गईं और जब उन्होंने दोनों को साथ देखा तो वे कृष्ण को भला बुरा कहने लगी। । श्रीकृष्ण के सेवक और मित्र श्रीदामा को राधा का यह व्यवहार ठीक नहीं लगा और वे राधा को भला बुरा कहने लगे। तब राधा ने क्रोधित होकर श्रीदामा को अगले जन्म में शंखचूड़ नामक राक्षस बन जाने का श्राप दे दिया। इस पर श्रीदामा ने भी उनको पृथ्वी लोक पर मनुष्य रूप में जन्म लेने लेकर 100 वर्ष तक कृष्ण विछोह का श्राप दे दिया।
श्रीदामा और देवी राधा ने जब एक दूसरे को शाप दे दिया तब श्री कृष्ण ने आकर देवी राधा से कहा कि पृथ्वी पर तुम्हें गोकुल में देवी कीर्ति और वृषभानु की पुत्री के रुप में जन्म लेना होगा। वहां तुम्हारा विवाह रायाण नामक एक वैश्य से होगा और सांसारिक तौर पर तुम रायाण की पत्नी कहलाओगी। रायाण मेरा ही अंश होगा। राधा रुप में तुम मेरी प्रियसी बनकर रहोगी और कुछ समय तक आपका मेरा विछोह भी रहेगा।परंतु समस्त संसार मेरे नाम से पहले तुम्हारा नाम ही लेगा।
रावल गांव में राधा का मंदिर है। माना जाता है कि यहां पर राधा जी का जन्म स्थान है। जिस जगह पर कमल के फूल में राधा रानी पधारी थी उसी जगह पर मंदिर का गर्भगृह है। यहाँ राधा रानी बाल रूप में विराजमान हैं। इन्हे लाड़ली जी के नाम से संबोधित किया जाता है। यहीं वृषभानु के राजमहल और निवास थे। इसलिए इस स्थान को रावल कहा जाता है। मुगलों के आक्रमण और यमुना में आई बाढ़ से मंदिर को काफी नुकसान हुआ था। लाड़ली जी के मंदिर की छत पर एक वृक्ष उगा है। इस वृक्ष की खासियत यह है कि इसकी जड़े नहीं हैं। इतना ही नहीं यह 12 महीने हरा-भरा रहता है।