धर्म संवाद / डेस्क : मंदिर में जा कर जब भी पूजा की जाती है परिक्रमा अवश्य की जाती है. परिक्रमा पूजा का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है. माना जाता है कि ऐसा करने से देवता प्रसन्न होते हैं. आपको बता दें कि परिक्रमा मूर्तियों, मंदिरों, पेड़-पौधों, नदियों के आसपास की जाती है. हिंदू धर्म में मंदिर में पूजा करने के बाद पूरे मंदिर या एक विशेष मूर्ति की खास तौर पर परिक्रमा की जाती है. चलिए परिक्रमा के महत्त्व जानते हैं.
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शास्त्रों में बताया गया है कि मंदिर में पूजा के बाद भगवान की परिक्रमा करने से ईश्वर की कृपा बनी रहती है साथ ही पुण्य की प्राप्ति होती है. परिक्रमा करने पर दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है. मंदिर और भगवान के आसपास परिक्रमा करने से सकारात्मक ऊर्जा शरीर में प्रवेश करती है.और ये ऊर्जा व्यक्ति के साथ घर तक आती है जिससे सुख-शांति बनी रहती है.
परिक्रमा का संस्कृत शब्द है प्रदक्षिणा. इसे दो भागों (प्रा + दक्षिणा) में बांटा गया है. प्रा से अर्थ है आगे बढ़ना और दक्षिणा मतलब है दक्षिण की दिशा.यानी कि दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हुए देवी-देवता की उपासना करना. परिक्रमा के दौरान प्रभु हमारे दाईं ओर गर्भ गृह में विराजमान होते हैं.
किस देवता की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए
- गणेशजी की चार, विष्णुजी की पांच, देवी दुर्गा की एक सूर्य देव की सात, और भगवान भोलेनाथ की आधी प्रदक्षिणा करें.
- शिव की मात्र आधी ही प्रदक्षिणा की जाती है,जिसके विशेष में मान्यता है कि जलधारी का उल्लंघन नहीं किया जाता है.