धर्म संवाद / डेस्क : रक्षा बंधन का त्योहार भाई- बहनों के मधुर संबंध को दर्शाता है। इस दिन हर बहन अपने भाई को रक्षा सूत्र बांधती हैं और भाई अपनी बहन को उसकी आजीवन रक्षा करने का वचन देते हैं। रक्षा बंधन की कई पौराणिक कथाएँ मिलती हैं। उन्मे से एक है श्री कृष्ण और पांडवों की पत्नी द्रौपदी की कथा।
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यह कथा, वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत में मिलती है। इस कथा के अनुसार, जब सुदर्शन चक्र से भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया तो उनकी उंगली कट गई थी, जिससे उनका खून बहने लगा था। यह देख कर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर बांध दी। उसी क्षण श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन मान लिया और आजीवन उसकी रक्षा करने का वचन दिया।
श्री कृष्ण ने इसी वचन की पूर्ति तब की जब भारी सभा में द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था। श्रीकृष्ण ने अपनी शक्ति से द्रौपदी की साड़ी को इतना बड़ा कर दिया कि दु:शासन साड़ी खींचते-खींचते थक गया और बेहोश हो गया। दरबार में साड़ी का ढ़ेर लग गया, लेकिन द्रौपदी की साड़ी कृष्ण की लीला से समाप्त नहीं हुई। द्रौपदी ने जो साड़ी का पल्लू फाड़ कर श्री कृष्ण को बांधा था, श्री कृष्ण ने उसी को 1000 गुण बड़ा कर प्रदान किया था। इसीलिए कहा जाता है कि भगवान आपके छोटे से उपकार को भी याद रखते हैं और उसे आपके अनुमान से भी बड़ा कर वापस लौटाते हैं।
जिस दिन द्रौपदी ने श्री कृष्ण कपड़ा बांधा था वो दिन सावन के महीने की पूर्णिमा तिथि थी। कहते हैं इसी वजह से इसी दिन रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है।