क्या होती है प्राण प्रतिष्ठा ? जाने इसके नियम

By Admin

Published on:

सोशल संवाद / डेस्क : 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। इसकी तैयारियां जोरों पर है। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,सचिन तेंदुलकर,अमिताभ बच्चन समेत देश-विदेश से VIP और  VVIP अतिथियों के आने की उम्मीद है। पर आखिरकार प्राण प्रतिष्ठा क्या होती है। चलिए आपको बताते हैं।

प्राण शब्द का अर्थ है जीवन शक्ति और प्रतिष्ठा का अर्थ है स्थापना। तो प्राण प्रतिष्ठा का शाब्दिक अर्थ है जीवन शक्ति की स्थापना करना या देवता को जीवन में लाना। प्राण प्रतिष्ठा हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इससे पहले किसी भी मूर्ति को पूजा योग्य नहीं माना जाता बल्कि निर्जीव मूर्ति मानते हैं। प्राण प्रतिष्ठा के जरिए उनमें शक्ति का संचार करके उन्हें देवता में बदला जाता है। इसके बाद वो पूजा और भक्ति के योग्य बन जाती है।

यह भी पढ़े : जाने झारखण्ड में मनाई जाने वाली टुसू परब कि पूरी कहानी

WhatsApp channel Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

शास्त्रों और धर्माचार्यों के अनुसार, जब किसी प्रतिमा में एक बार प्राण प्रतिष्ठा हो जाती है, तो वह प्रतिमा एक देवता में बदल जाती है। वह देवता हमारी या किसी भी उपासक की प्रार्थना स्वीकार कर सकते है और अपना वरदान दे सकते हैं।  प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया का उल्लेख वेदों, पुराणों, जैसे मस्त्य पुराण, वामन पुराण, नारद पुराण आदि में भी है।

प्राण प्रतिष्ठा समारोह में उच्च ‘सिद्ध’ पुजारियों द्वारा आयोजित विस्तृत अनुष्ठानों की एक श्रृंखला शामिल होती है। यह प्रक्रिया मूर्ति और मंदिर परिसर के शुद्धिकरण और सफाई से शुरू होती है। इसके बाद वैदिक मंत्रों का जाप और देवी-देवताओं की उपस्थिति का आह्वान करने के लिए विशिष्ट अनुष्ठान किए जाते हैं। भक्ति के प्रतीक के रूप में देवता को फूल, फल, दूध और अन्य चीजें जैसे विभिन्न प्रसाद चढ़ाए जाते हैं।
अनुष्ठान के केंद्रीय भाग में मूर्ति में दिव्य ऊर्जा, या प्राण का स्थानांतरण शामिल होता है। फिर मूर्ति को गर्भ गृह में रखकर पूजन प्रक्रिया शुरू की जाती है।

See also  जाने सावन सोमवार व्रत के नियम , इन चीजों को करने से बचे

इसी दौरान कपड़े पहनाकर देवता की मूर्ति यथास्थान पुजारी द्वारा स्थापित की जाती है। मूर्ति का मुख हमेशा पूर्व दिशा की ओर करके रखा जाता है। सही स्थान पर इसे स्थापित करने के बाद देवता को आमंत्रित करने का काम भजनों, मंत्रों और पूजा रीतियों से किया जाता है। सबसे पहले मूर्ति की आंख खोली जाती है। ये प्रक्रिया पूरी होने के बाद फिर मंदिर में उस देवता की मूर्ति की पूजा अर्चना होती है। इस अनुष्ठान को हिंदू मंदिर में जीवन का संचार करने के साथ उसमें दिव्यता और आध्यात्मिकता की दिव्य उपस्थिति लाने वाला माना जाता है। इसी वजह से प्राण प्रतिष्ठा के बाद हमें दैवीय अहसास सा महसूस होता है।

Admin