धर्म संवाद / डेस्क : हिंदू धर्म में करवा चौथ का त्यौहार बहुत ख़ास माना जाता है। करवा चौथ कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस व्रत में चौथ माता की पूजा जाती है और उनसे सुहागिन स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। चाैथ माता को माता पारवती का ही एक रूप माना जाता है। देश में चौथ माता का एकमात्र प्राचीन और चमत्कारी मंदिर स्थित है राजथान के के सवाई माधोपुर जिले में ‘चौथ का बरवाड़ा’ नामक स्थान में है।
यह भी पढ़े : यहाँ श्रीराम से पहले बार मिले थे विभीषण
चौथ माता मंदिर लगभग 567 साल पुराना है। इस मंदिर की स्थापना 1451 में वहां के शासक भीम सिंह ने की थी। मंदिर तक पहुंचने के लिए 700 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। इस मंदिर की उंचाई कम से कम 1100 फीट है। चौथ माता का मंदिर राजपूताना शैली में सफेद संगमरमर का बना हुआ है। इस मंदिर में चौथ माता के साथ भगवान गणेश और भैरवनाथ की भी मूर्ति विधमान है।
स्थानिय लोग हर शुभ कार्य से पहले सबसे पहले चौथ माता को निमंत्रण देते हैं। तब जाकर वह अपना शुभ कार्य करते हैं। लोग बताते हैं कि ऐसा करने से सभी शुभ कार्य बिना किसी विघ्न के पूरे हो जाते हैं। मंदिर सुंदर हरे वातावरण और घास के मैदान के बीच स्थित है। सफेद संगमरमर के पत्थरों से स्मारक की संरचना तैयार की गई है। दीवारों और छत पर शिलालेख के साथ यह वास्तुकला की परंपरागत राजपूताना शैली के लक्षणों को प्रकट करता है।
यह भी पढ़े : यहाँ है श्रीकृष्ण की कुलदेवी का मंदिर
वैसे तो हर चतुर्थी तिथि में यहां भक्त मां के दर्शन करने पहुंचते हैं लेकिन करवा चौथ के दिन यहां खास तौर पर भक्तों का तांत लगता है और हर कोई मां के दर्शन कर लंबी उम्र और उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता है। बूंदी राजघराने में आजतक चौथ माता को कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है। माता के नाम पर यहां चौथा माता बाजार भी है।
मंदिर में सैकड़ों साल से एक अखण्ड ज्योति भी जल रही है। दर्शनार्थियों की संख्या के आधार पर यह मंदिर राजस्थान के 11 सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में शुमार है। कोई संतान प्राप्ति तो कोई सुख-समृद्धि की कामना लेकर चौथ माता के दर्शन को आता है। मान्यता है कि माता सभी की इच्छा पूरी करती हैं।