धर्म संवाद / डेस्क : आपने श्रीराम की कई मूर्तियाँ देखि होंगी पर आपने कभी भी उनकी काले रंग की मूर्ति नहीं देखि होगी। जी नहीं हम रामलला की बात नहीं कर रहे। हम बात कर रहे है एक पुराने मंदिर की जहाँ श्रीराम की काले रंग की प्रतिमा विराजमान है। ये मंदिर महाराष्ट्र के नासिक में स्थित है। इस मंदिर को कालाराम मंदिर के नाम से जाना जाता है।
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि सरदार रंगारू ओढेकर नाम के एक व्यक्ति को सपने में श्रीराम आए थे। उन्होंने सपने में भगवान की काले रंग की मूर्ति के गोदावरी नदी में तैरते हुए देखा था। फिर वह सुबह-सुबह नदी किनारे पहुंचे। वहां सचमुच में उन्हें श्रीराम की कालेरंग की मूर्ति मौजूद थी। फिर उन्होंने उस मूर्ति को लाकर मंदिर में स्थापित किया। यह एक बेहद ही खूबसूरत मंदिर है। इसकी कालाकृति उच्चकोटी है।
यह भी पढ़े : यहाँ भगवान राम को दिया जाता है गार्ड ऑफ ऑनर, माने जाते हैं राजा
मंदिर का निर्माण साल 1792 में हुआ था। इससे पहले यहां पर लकड़ी से निर्मित मंदिर था। मंदिर निर्माण में 12 साल लगे थे। पूरा मंदिर प्रांगण 245 गुना 105 फीट का है। इसके अलावा यहां अलग से एक सभामंडप है। उसका आकार 75 गुना 31 गुना 12 फीट है। यह सभामंडप हर तरफ से खुला है। मंदिर में श्रीराम, सीता और लक्ष्मण खड़े मुद्रा में हैं। इन मूर्तियों की ऊंचाई करीब दो फीट है। मुख्य मंदिर में 14 सीढ़ियाँ हैं, जो राम के 14 वर्ष के वनवास को दर्शाती हैं।
नासिक शहर के पंचवटी क्षेत्र में स्थित है।आपको बता दे पंचवटी में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी ने वनवास का समय बिताया था। पंचवटी का वर्णन ‘रामचरितमानस‘, ‘रामचन्द्रिका’, ‘साकेत’, ‘पंचवटी’ एवं ‘साकेत-संत जैसे कई काव्य ग्रंथों में किया गया है। इनमें बताया गया है कि वनवास के दौरान श्री राम, सीता और लक्ष्मण पंचवटी क्षेत्र में पर्णकुटी बनाकर रहने लगे थे।
दलित सत्याग्रह
1930 में बीआर अंबेडकर और मराठी शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता पांडुरंग सदाशिव साने ने हिंदू मंदिरों में दलितों की पहुंच की मांग के लिए एक आंदोलन का नेतृत्व किया।
2 मार्च 1930 को अम्बेडकर ने कालाराम मंदिर के बाहर एक बड़ा विरोध प्रदर्शन आयोजित किया। दलित प्रदर्शनकारी ट्रकों में भरकर नासिक पहुंचे और मंदिर को घेरकर धरना दिया। अगले कुछ दिनों में, उन्होंने गाने गाए, नारे लगाए और मंदिर में प्रवेश के अधिकार की मांग की। प्रदर्शनकारियों को विरोध का सामना करना पड़ा और जब उन्होंने रामनवमी के जुलूस को मंदिर परिसर में प्रवेश करने से रोकने की कोशिश की तो पथराव की घटना हुई। उसके बाद बाबासाहेब मौके पर पहुंचे और स्थिति को नियंत्रित किया ।