एकमात्र ऐसा शहर जो है चार धाम और सप्त पुरी दोनों का हिस्सा , भव्य मंदिर का स्वयं भगवान श्री कृष्ण के पोते ने करवाया था निर्माण

By Tami

Published on:

द्वारका

धर्म संवाद / डेस्क : महाभारत काव्य में बताया गया है कि द्वारका भगवान श्री कृष्ण की राजधानी थी।  देवभूमि के रूप में जाना जाने वाला द्वारका एकमात्र ऐसा शहर है जो हिंदू धर्म में वर्णित चार धाम (चार प्रमुख पवित्र स्थान) और सप्त पुरी (सात पवित्र शहर) दोनों का हिस्सा है। यही स्थित है द्वारकाधीश मंदिर। ये द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। इतिहासकारों का मानना है कि द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के पोते वज्रनाभ ने करवाया है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि ये मंदिर 2500 वर्ष पुराना है। इस मंदिर को जगद मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। पांच मंजिला मुख्य मंदिर चूना पत्थर और रेत से निर्मित अपने आप में भव्य और अद्भुत है।

यह भी पढ़े : भगवान कृष्ण को क्यों कहा जाता है साँवलिया सेठ

मंदिर में 72 स्तम्भ है और मंदिर का शिखर लगभग 78 मीटर ऊंचा है। मंदिर की पूरी ऊंचाई तकरीबन 157 फीट है। इस मंदिर के शिखर पर एक झंडा लगा हुआ है जिसमें चंद्रमा और सूर्य की आकृति बनी हुई है। ‌इस ध्वज की लंबाई 52 गंज होती है, इसके ध्वज को कई मिलों दूर तक से देखा जा सकता है। ध्वज को प्रत्येक दिवस में तीन बार बदला जाता है। हर बार अलग रंग का ध्वज फहराया जाता है। 52 गंज के ध्वज के पीछे कई तरह के मिथक प्रचलित है। एक मिथक के अनुसार 12 राशि, 27 नक्षत्र, 10 दिशाएं, सूर्य, चंद्र, और श्री द्वारकाधीश मिलकर 52 हो जाते हैं। इसलिए ध्वज को 52 गज का रखा जाता है। वहीं, एक अन्य मान्यता के अनुसार एक समय में द्वारका में 52 द्वार थे और ये उसी का प्रतीक है। मंदिर का ये ध्वज एक खास दरजी द्वारा ही सिला जाता है। ध्वज बदलने की प्रक्रिया के दौरान उसे देखने की मनाही होती है। इस ध्वज पर सूर्य और चंद्र बने हुए हैं और ऐसा माना जाता है कि जब तक सूर्य और चंद्र रहेगा, द्वारकाधीश का नाम रहेगा।

WhatsApp channel Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

ध्वज बदलने के लिए भक्त एडवांस बुकिंग करवाते हैं। जिस परिवार को ये मौका मिलता है वे नाचते गाते हाथ में ध्वज लेकर आते हैं और भगवान को समर्पित कर देते हैं। यहां से अबोटी ब्राह्मण इसे ऊपर लेकर जाते हैं और ध्वज बदल देते हैं। मंदिर में ध्वज आरती के दौरान चढ़ाया जाता है। द्वारकाधीश मंदिर की मंगला आरती सुबह 7.30 बजे, श्रृंगार सुबह 10.30 बजे, इसके बाद सुबह 11.30 बजे, फिर संध्या आरती 7.45 बजे और शयन आरती 8.30 बजे होती है। इसी समय ध्वज बदला जाता है।

See also  कालिया दमन- कैसे हुआ था कालिया नाग का वध

जहा आज वर्तमान में द्वारकाधीश मंदिर है कहते है एक समय वहा श्री कृष्ण का निजी महल ‘हरि गृह’ था, और बाकी नगर समुद्र में है। मंदिर को वर्तमान स्वरूप 16वीं शताब्दी में प्राप्त हुआ था।  यह मंदिर चारों और से परकोटे से घिरा हुआ है। इनमें उत्तर दिशा में मोक्ष तथा दक्षिण में स्वर्ग का द्वार हैं। यहां से 56 सीढ़ियां चढ़ कर स्वर्ग द्वार से मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर के पूर्व दिशा में शंकराचार्य द्वार स्थापित शारदा पीठ स्थित है। द्वारकाधीश मंदिर के गर्भगृह में चांदी के सिंहासन पर भगवान श्री कृष्ण की श्यामवर्णी चतुर्भुजी प्रतिमा विराजमान है। भगवान ने हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किए हैं।

मंदिर के दक्षिण में गोमती धारा पर चक्रतीर्थ घाट है। उससे कुछ ही दूरी पर अरब सागर है जहां समुद्रनारायण मंदिर स्थित है। इसके समीप ही पंचतीर्थ है। वहां पांच कुओं के जल से स्नान करने की परम्परा है। मंदिर के भीतर अन्य मंदिर हैं जो सुभद्रा, बलराम और रेवती, वासुदेव, रुक्मिणी और कई अन्य को समर्पित हैं।

द्वारका से सबसे नजदीक का एयरपोर्ट जामनगर है जो यहां से 47 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा आप पोरबंदर एयरपोर्ट तक की फ्लाइट भी ले सकते हैं।  द्वारकाधीश मंदिर से रेलवे स्टेशन एक किलोमीटर है। और अगर आप रोड से जाना चाहते है तो आप न सिर्फ खुद की गाड़ी से वहां पहुंच सकते हैं बल्कि मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको कई बस सर्विस भी मिल जाएंगी।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .