धर्म संवाद / डेस्क : देवो के देव महादेव, भगवान शिव को त्रिशूल और डमरू के बिना कल्पना भी नहीं किया जा सकता। भगवान शिव के डमरू को ब्रह्मांड की उत्पत्ति, लय और विनाश के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। डमरू की ध्वनि को सृष्टि के चक्र और ब्रह्मा के नाद से जोड़ा जाता है। यहाँ तक की नासा ने एक आकृति की खोज की थी, जो भगवान शिव के डमरू जैसी दिखती थी। नासा ने इस आकृति का नाम क्रैब नेबुला रखा था। भारतीय वैज्ञानिकों ने इसे शिव का डमरू नाम दिया था। यह आकृति पृथ्वी से 6,500 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। अंतरिक्ष विज्ञान के नियमों के मुताबिक, यहां से अंतरिक्ष में ध्वनि आ रही है और कुछ नया भी बन रहा है।
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भगवान शिव को कैसे मिला था डमरू?
भगवान शिव को डमरू कैसे मिल इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में जब देवी सरस्वती प्रकट हुईं तो उन्होंने अपनी वीणा से सृष्टि को ध्वनि दी, लेकिन इस ध्वनि में कोई भी सुर या संगीत नहीं था। तभी उस समय भगवान शिव जी ने नृत्य करते हुए 14 बार डमरू बजाया और उस डमरू के सुर-ताल-संगीत से सृष्टि में ध्वनि का जन्म हुआ। शिव पुराण के अनुसार कहा जाता है कि डमरू स्वयं भगवान ब्रह्मा का स्वरूप है। जैसे-जैसे ब्रह्म के करीब पहुंचते हैं वह संकुचित हो दूसरे सिरे से मिल जाता है और फिर विशालता की ओर बढ़ता है। सृष्टि में संतुलन के लिए इसे भी भगवान शिव अपने साथ लेकर प्रकट हुए थे।
डमरू का महत्व
- सृष्टि और लय का प्रतीक – भगवान शिव के डमरू को सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार के निरंतर चक्र का प्रतीक माना जाता है। हिंदू दर्शन में यह मान्यता है कि ब्रह्मांड का निर्माण और विनाश एक निरंतर लय में चलता रहता है। डमरू की ध्वनि, जिसे “ॐ” का उच्चारण माना जाता है, इसे इस लय के साथ जोड़ा जाता है। इस ध्वनि में ब्रह्मा, विष्णु और शिव के तत्व निहित होते हैं, जो सृष्टि के हर पहलू को नियंत्रित करते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, जब कोई हाई-मास तारा जन्म लेता है, तो उससे गैस और धूल के सघन बादल बनते हैं। इन बादलों का आकार रेतघड़ी या डमरू जैसा होता है।
- तांडव – भगवान शिव का तांडव नृत्य ब्रह्मांड की गति और संतुलन का प्रतीक है। यह नृत्य सृष्टि के निर्माण, पालन और विनाश की प्रक्रिया को व्यक्त करता है। जब भगवान शिव तांडव करते हैं, तो उनके हाथ में डमरू होता है, जिसकी ध्वनि ब्रह्मांड की ऊर्जा को गतिशील बनाए रखती है। डमरू की आवाज से सृष्टि का चक्र निरंतर चलता रहता है और यह जीवन और मृत्यु के चिरंतन चक्र का प्रतीक बन जाता है।
- शिव तांडव स्तोत्र – भगवान शिव के डमरू का एक महत्वपूर्ण संदर्भ शिव तांडव स्तोत्र में भी मिलता है। यह स्तोत्र भगवान शिव के तांडव नृत्य और उनकी महिमा का वर्णन करता है। इसमें डमरू की ध्वनि को भगवान शिव के क्रोध और सौम्यता दोनों का प्रतीक बताया जाता है। डमरू की ध्वनि से उत्पन्न ऊर्जा सृष्टि की गति और लय को नियंत्रित करती है, और इसके माध्यम से भगवान शिव ने ब्रह्मांड के सभी प्राणियों को जीवन और मृत्यु के चक्र से जोड़ा है।
भगवान शिव का डमरू केवल एक वाद्य यंत्र नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांड के सृजन, विनाश और लय का प्रतीक है। इसकी ध्वनि में सृष्टि के हर पहलू की गूंज है, और यह भगवान शिव के शाश्वत तत्त्व को व्यक्त करती है। शिव के डमरू के पीछे की कहानियाँ न केवल पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि इनसे जीवन, सृष्टि और मृत्यु के गहरे रहस्यों का भी परिचय मिलता है। डमरू की ध्वनि, नृत्य और आकार सभी एक साथ मिलकर भगवान शिव के सर्वशक्तिमान रूप को व्यक्त करते हैं, और यह हमें जीवन की वास्तविकता को समझने की प्रेरणा देते हैं।