संजीवनी बूटी : कल्पना या आयुर्वेद

By Admin

Published on:

सोशल संवाद / डेस्क : संजीवनी बूटी एक रहस्यमयी जड़ीबूटी का नाम था जिससे मृत व्यक्ति भी जीवित हो जाता था। इस बूटी को लोकप्रियता रामायण से मिली। रामायण की कथा कहती है कि ‘मूर्छित’ लक्ष्मण को जीवित करने के लिए हिमालय से हनुमान संजीवनी बूटी लेकर आए थे।बचपन में हम सबको ये जादुई लगती थी। पर असल में ये विज्ञान है, एक औषधि है। जिसे आयुर्वेद कहा जाता है।

रामयण के प्रसंग के अनुसार, जब राम-रावण युद्ध में मेघनाथ के भयंकर अस्त्र प्रयोग से लक्ष्मण मुर्चित हो गए थे , तब हनुमानजी ने जामवंत के कहने पर वैद्यराज सुषेण को बुलाया और फिर सुषेण ने कहा कि आप द्रोणगिरि पर्वत पर जाकर 4 वनस्पतियां लाएं : मृत संजीवनी (मरे हुए को जिलाने वाली), विशाल्यकरणी (तीर निकालने वाली), संधानकरणी (त्वचा को स्वस्थ करने वाली) तथा सवर्ण्यकरणी (त्वचा का रंग बहाल करने वाली)। 

[short-code1]

यह भी पढ़े : आखिर लक्ष्मण रेखा का असली नाम क्या था

WhatsApp channel Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

हनुमान जी भी उड़ गए थे हिमालय की ओर और उस पर्वत पे भी पहुँच गए थे जहा ये सारी जड़ीबूटियाँ उपलब्ध थी।मगर वो यह नहीं जान पा रहे थे कि आखिर में वो संजीवनी बूटी कौन-सी है, जिससे लक्ष्मण जी की जान बचेगी। इसलिए वे पूरा पर्वत उठा ले आय थे ।एक जड़ीबूटी से कैसे किसी की जान बच सकती है । सोचने में अजीब लगता होगा मगर ऐसा संभव है । आज का विज्ञान भी मानता है कि पृथ्वी पर पायी जाने वाली ऐसी हजारों चीज़े हैं, जिनका उपयोग औषधि के रूप में किया जा सकता है। प्राचीन भारत में इस चिकित्सा प्रणाली को आयुर्वेद नाम दिया गया है।

आयुर्वेद भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। संस्कृत में आयुर्वेद का मतलब होता है- जिंदगी का विज्ञान। भारत में इस विद्या का जन्म 5000 साल पहले हुआ था।  इस विद्या को कई वर्षों पहले गुरुओं द्वारा शिक्षा में अपने शिष्यों को सिखाया जाता था। इसे मौखिक रूप से सिखाया जाता था, जिस कारण इसका लिखित ज्ञान दुर्गम है। पश्चिम में कई प्राकृतिक चिकित्सा प्रणालियों के सिद्धांतों की जड़ें आयुर्वेद में हैं, जिनमें होम्योपैथी और पोलारिटी थेरेपी शामिल हैं।

संजीवनी बूटी एक ऐसी जड़ीबूटी मणि जाती है जिससे अगर दवाई बने जाती है तो इससे एक मृत व्यक्ति को भी जीवित किया जा सकता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार , सबसे पहले संजीवनी बूटी और इससे औषधि बनाने की विद्या शुक्राचार्य ने भगवन शिव से सीखी थी। जिसके दम पर वे युद्ध में मारे गए दैत्यों को फिर से जीवित कर देते थे। वैज्ञानिक साहित्य की सूची में कहीं-कहीं संजीवनी का उल्लेख सेलाजिनेला ब्रायोप्टेरिस (Selaginella bryopteris )के रूप में किया गया है। प्राचीन ग्रंथों की खोज में अब तक किसी भी पौधे का खुलासा निश्चित रूप से संजीवनी के रूप में नहीं हुआ है। कुछ ग्रंथों में लिखा है कि संजीवनी अंधेरे में चमकती है।

हनुमान जी जिस पर्वत को उठाकर ले आए थे, वो आज भी चर्चित है। श्रीलंका में इस पर्वत को रूमास्सला पर्वत के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि आज भी इस पर्वत पर संजीवनी बूटी पाई जाती है। पर कही कही ये भी उल्लेख मिलता है कि लक्ष्मण जी के होश में आ जाने के बाद हनुमान जी ने पर्वत को वापस अपनी जगह पर जाकर रख दिया था।

इसी के साथ कहा ये भी जाता है कि श्री लंका में दक्षिणी समुद्री किनारे पर कई स्थानों पर हनुमान जी द्वारा लाए गए पहाड़ के टुकड़े पड़े हैं। इतना ही नहीं, यह भी कहा जाता है कि जब हनुमान जी पहाड़ उठाकर ले जा रहे थे तो उसका एक टुकड़ा रीतिगाला में गिरा। श्रीलंका की खूबसूरत जगहों में से एक उनावटाना बीच इसी पर्वत के पास है। उनावटाना का मतलब ही है आसमान से गिरा। इसकी खासियत यह है कि यहां आज भी ऐसी जड़ी बूटियां उगती हैं, जो उस इलाके से बहुत अलग हैं। वहीं, श्रीलंका में हाकागाला गार्डन में पहाड़ का दूसरा हिस्सा गिरा। इस जगह के पेड़-पौधे भी उस इलाके की मिट्टी और पेड़-पौधों से बिलकुल अलग हैं।

See also  व्यापार में हो रहा है नुकसान, तो आज ही धारण करें ये रत्न

लखनऊ स्थित वनस्पति अनुसंधान संस्थान में संजीवनी बूटी के जीन की पहचान पर कार्य कर रहे पांच वनस्पति वैज्ञानिको में से एक डॉ. पी.एन. खरे के अनुसार संजीवनी का संबंध पौधों के टेरीडोफिया समूह से है, जो पृथ्वी पर पैदा होने वाले संवहनी पौधे थे। उन्होंने बताया कि नमी नहीं मिलने पर संजीवनी मुरझाकर पपड़ी जैसी हो जाती है, लेकिन इसके बावजूद यह जीवित रहती है और बाद में थोड़ी सी ही नमी मिलने पर यह फिर खिल जाती है। यह पत्थरों तथा शुष्क सतह पर भी उग सकती है। इसके इसी गुण के कारण वैज्ञानिक इस बात की गहराई से जांच कर रहे है कि आखिर संजीवनी में ऐसा कौन सा जीन पाया जाता है जो इसे अन्य पौधों से अलग और विशेष दर्जा प्रदान करता है।

यह भी पढ़े : लाघिमा सिद्धि -The Saadhna of Floating in Air

हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी असली पहचान भी काफी कठिन है क्योंकि जंगलों में इसके समान ही अनेक ऐसे पौधे और वनस्पतियां उगती है जिनसे आसानी से धोखा खाया जा सकता है। मगर कहा जाता है कि चार इंच के आकार वाली संजीवनी लंबाई में बढ़ने के बजाए सतह पर फैलती है। संजीवनी बूटी हार्ट स्ट्रोक, अनियमित मासिक धर्म, डिलिवरी के समय, जॉन्डिस में लाभदायक है।

कुछ लोगों का मानना है की द्रोणागिरी पर्वत पर 2 पौधों का  समूह मिला जो संजीवनी हो सकती है । ये पर्वत जोशीमठ में है और समुद्र ताल से 1500 फीट ऊंचाई पर है।अब इस खबर में कितनी सचाई है इसका पता अभी तक नहीं चला ।

द्रोणागिरी के लोग वह पाय जाने वाले एक पौधे को ही मृत संजीवनी मानते हैं। और धौलधर के रहने वाले ग्रामवासी दुसरे पौधे की पूजा करते है। ये पौधा  बेहोशी, मस्तिष्क विकार, सांस की तकलीफ, बदन दर्द आदि समस्याओ से छुटकारा दिलाता है।

आदिवासी, गाँववाले और साधू, संत जो हिमालय के तौर तरीके के जानकार थे उन्हें इस पौधे के लुप्त होने या बर्बाद होने का कभी भय नहीं था और ना आज है।  

यह भी पढ़े : वर्तमान समय में रामायण काल ​​के 10 प्राचीन स्थल जो आज भी हैं विद्यमान

भारत के बायोलोजीस्ट्स, चिकित्सा व्यवसायी, उत्साही और अनुसंधान विशेषज्ञों के लिए एक बहुत बड़ा सवाल ये है की कौन से बूटी वो मृत संजीवनी है जिससे मृत को जीवित किया जा सकता है. जितने औषधीय पौधों की खोज हुई हैं उनमे कोई भी ऐसा पौधा नहीं मिला जिसमे ये काबिलियत हो और वाल्मीकि रामायण के अनुसार मृत संजीवनी अँधेरे में चमकती है और कोई भी पौधा आज तक ऐसा नही मिला जिसमे मृत संजीवनी की तरह औषधीय गुण हो और अँधेरे में भी चमके ।सेलाजिनेला ब्रायोप्टेरिस (Selaginella bryopteris ) भी नहीं।

संजीवनी बूटी की नयी अपडेट ये मिली थी कि ये पौधा सूखे में भी जीवित बच सकता है । कृषि वैज्ञानिक इस विशेषता का लाभ ज़रूर उठाना चाहेगी ताकि उसकी जीन का इस्तेमाल आज के फसलो में डाल सके और आज के फसलों को भी सूखा से बचा सके ।

Admin