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बसंत पंचमी पर महादेव को मिथिला के लोग चढ़ाएंगे तिलक, सदियों पुरानी परंपरा

By Tami

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बाबा बैद्यनाथ का तिलक

धर्म संवाद / डेस्क : देशभर में बसंत पंचमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन ज्ञान तथा बुद्धि की देवी माता सरस्वती की उपासना की जाती है। लेकिन देवघर में ये दिन और ख़ास हो जाता है। दरअसल,बसंत पंचमी के दिन मिथिला के लोग बाबा बैद्यनाथ को तिलक चढ़ाते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। 

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बसंत पंचमी के दिन बाबा बैद्यनाथ का तिलकोत्सव मनाया जाता है। तिलक की इस रस्म को अदा करने के लिए बाबा के ससुराल यानी मिथिलांचल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु अलग तरह का कांवड़ लेकर बाबा के धाम पहुंचते हैं और बसंत पंचमी के शुभ दिन बाबा को तिलक चढ़ाकर अबीर-गुलाल लगा एक-दूसरे को बधाई देते हैं। साथ ही शिवरात्रि के अवसर पर शिव विवाह में शामिल होने का संकल्प लेकर वापस लौट जाते हैं। इस दिन बाबा बैद्यनाथ की विशेष तरीके से पूजा अर्चना की जाती है। अलग तरीके का भोग भी लगाया जाता है।

शिव पारवती विवाह

आपको बता दे महाशिवरात्रि को भगवन शिव की शादी का उत्सव मनाया जाता है; और देवघर में भोलेनाथ बाबा बैद्यनाथ के रूप में विराजमान है। शादी से पहले बसंत पंचमी के दिन बाबा बैद्यनाथ का तिलकोत्सव किया जाता है। बसंत पंचमी के दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव के ऊपर आम की मंजरी, अबीर गुलाल और मालपुए का भोग लगाकर तिलोकत्सव मनाया जाता है। यह सब चीज पहले भगवान विष्णु को अर्पण की जाती है, उसके बाद भगवान शिव को चढ़ाई जाती है। माना जाता है भगवान विष्णु के द्वारा ही भगवान शिव के शिवलिंग की स्थापना हुई है। वहीं यह तिलकोत्सव देवघर के तीर्थ पुरोहित नहीं, बल्कि मिथिला वासी करते हैं।

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देवघर में तिलकोत्सव मनाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। मिथिला के लोग कहते है कि माता पार्वती हिमालय पर्वत की सीमा की थीं और मिथिला हिमालय की सीमा में है। इस तरह माता पार्वती मिथिला की बेटी हैं। मिथिला के लोग लड़की पक्ष की तरफ से देवघर में पहुंचकर बाबा बैद्यनाथ को तिलक चढ़ाते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दे इस परंपरा की शुरुआत ऋषि-मुनियों ने की थी। इसे मिथिलावासी आज तक निभाते आ रहे हैं। मिथिलावासी खुद को माता पार्वती का भाई और महादेव भोलेनाथ को अपना बहनोई मानते हैं। बसंत पंचमी के दिन बाबा मंदिर के प्रांगण में उनका तिलक कर उन्हें शिवरात्रि के दिन बारात लेकर आने के लिए आमंत्रण देते हैं।

तिलक चढ़ाने की परंपरा एक मात्र देवघर स्थित द्वादश ज्योर्तिलिंग में ही देखने को मिलती है। भोलेनाथ के तिलकोत्सव के लिए माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि निर्धारित होती है। बाबाधाम में तिलकोत्सव के दौरान मिथलावासी भोलेनाथ को गुलाल भी अर्पित करते हैं। परंपरा के मुताबिक यही गुलाल एक-दूसरे को लगाकर फाग गीत भी गाना प्रारम्भ कर देते हैं। इतना ही नहीं, बसंत पंचमी पर इस्तेमाल किए गए गुलाल को तिलकहरुवे अपने घर लेकर जाते हैं जहां, इसी गुलाल से नवविवाहितों की पहली होली होती है।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .

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