धर्म संवाद / डेस्क : दक्षिण भारत में स्थित शक्तिपीठों में कांचीपुरम के कामाक्षी अम्मान मंदिर सबसे प्रमुख है। यह मंदिर देवी कामाक्षी को समर्पित है, जो माता पारवती का ही एक रूप हैं। कामाक्षी मंदिर को प्रेम से कामाक्षी अम्मा मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर को पल्लव राजाओं ने छठी शताब्दी के आसपास बनवाया था। कामाक्षी देवी मंदिर देश की 51 शक्ति पीठों में शामिल है। मंदिर में कामाक्षी देवी की आकर्षक प्रतिमा है। यह भी कहा जाता है कि कांची में कामाक्षी, मदुरै में मीनाक्षी और काशी में विशालाक्षी विराजमान हैं।
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मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर के श्री चक्र की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। कामाक्षी तीन शब्दों की संधि से बना है, का, मा एवं अक्ष। का अर्थात् सरस्वती, मा अर्थात् लक्ष्मी एवं अक्ष जिसका अर्थ है चक्षु अथवा आँखें। अर्थात् वह देवी, सरस्वती एवं लक्ष्मी जिनके चक्षु हैं। माना ये भी जाता है कि देवी ने भंडासुर का वध करने के लिए कन्या अवतार लिया था एवं वे इसी मंदिर में बैठी थीं। इस मंदिर की मूर्ति को स्वयंभू माना जाता है। अर्थात् यह मूर्ति किसी के द्वारा बनायी गयी नहीं है, अपितु यह स्वयं अवतरित हुई थी।
यह भी मान्यता है कि देवी इस मंदिर में तीन स्वरूपों में विराजती हैं, स्थूल, सूक्ष्म एवं शून्य। कथा के अनुसार, भगवान् शिव से विवाह करने के लिए कामाक्षी अम्मा ने सुई की नोक के ऊपर एक पाँव पर खड़ी होकर तपस्या की थी। उनकी अभिलाषा पूर्ण हुई एवं फाल्गुन मास के उत्तर नक्षत्र में भगवान् शिव से उनका विवाह हुआ। यहाँ देवी कामाक्षी का सोने का एक चित्र भी था जिसमें उन्हें तपस्या की मुद्रा में एक पाँव पर खड़े चित्रित किया गया था। इस चित्र को बंगारू कामाक्षी भी कहा जाता है। मंदिर पर आक्रमण के दर से इस चित्र को तंजावुर में रख दिया गया था।
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ऋषि दुर्वासा ने भी यहाँ तपस्या की थी। कामाक्षी देवी को प्रसन्न कर उन्होंने श्राप से मुक्ति पायी, और फिर यहाँ श्री चक्र की स्थापना की। उन्होंने यहाँ सौभाग्य चिंतामणि कल्प की रचना की जिसे दुर्वासा संहिता भी कहा जाता है। अपने इस ग्रन्थ में उन्होंने कामाक्षी की उपासना की विस्तृत विधि निर्धारित की। आज भी यहाँ कामाक्षी अम्मान की उपासना ठीक वैसे ही की जाती है जैसे उनके ग्रन्थ में दर्शाया गया है।
मंदिर परिसर में गायत्री मंडपम भी है। कभी यहां चंपक का वृक्ष हुआ करता था। मां कामाक्षी के भव्य मंदिर में भगवती पार्वती का श्रीविग्रह है, जिसे कामाक्षीदेवी या कामकोटि भी कहते हैं। भारत के द्वादश प्रधान देवी-विग्रहों में से यह एक मंदिर है। इस मंदिर परिसर के अंदर चारदीवारी के चारों कोनों पर निर्माण कार्य किया गया है। एक कोने पर कमरे बने हैं तो दूसरे पर भोजनशाला, तीसरे पर हाथी स्टैंड और चौथे पर शिक्षण संस्थान बना है। कहा जाता है कि कामाक्षी देवी मंदिर में आदिशंकराचार्य की काफी आस्था थी। उन्होंने ही सबसे पहले मंदिर के महत्व से लोगों को परिचित कराया। परिसर में ही अन्नपूर्णा और शारदा देवी के मंदिर भी हैं।
यहाँ कामाक्षी अम्मा पद्मासन की योग मुद्रा में बैठी हैं। उनका आसन पंच ब्रम्हासन है। कामाक्षी अम्मा की चार भुजाएं हैं। उनके निचले करों में गन्ना एवं पांच पुष्पों का गुच्छा है। वहीं ऊपरी दोनों हाथों में वे शस्त्र, पाश एवं अंकुश धारण किया हुए हैं। पास ही एक तोता भी है जिस पर सहसा लोगों की दृष्टि नहीं पड़ती। देवी की प्रतिमा को सदैव चटक रंगीन साड़ी एवं सम्पूर्ण श्रृंगार द्वारा अलंकृत रखा जाता है।
7 गोत्रों के पुजारी कामाक्षी मंदिर में पूजा अर्चना कर सकते हैं। लेकिन केवल 2 गोत्रों के पुजारी ही यहाँ पूजा करते हैं। अन्य गोत्रों के पुजारी तंजावुर के कामाक्षी मंदिर में आराधना करते हैं। प्रतिमा के सम्मुख योनी के आकार की एक संरचना है जिसके भीतर श्री चक्र बना हुआ है। इसी श्री चक्र की यहाँ पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार देवी इस श्री चक्र के उपरी बिंदु पर विराजती हैं।
कामाक्षी मंदिर कांचीपुरम बस स्टैंड से महज एक किलोमीटर और कांचीपुरम रेलवे स्टेशन से करीब 3 किलोमीटर दूर है। मंदिर में दर्शन का समय सुबह 5:30 से दोपहर 12 बजे और फिर शाम 4 बजे से रात 9 बजे तक रहता है।