धर्म संवाद / डेस्क : सनातन धर्म में कर्मकांड के बाद अस्थि और बाल पवित्र जल में विसर्जित करने की परंपरा है. अधिकतर लोग अपने आस पास की नदी में अस्थि विसर्जन कर देते हैं.देश की पवित्र नदी गंगा के अलावा ताप्ती नदी में कर्मकांड और अस्थि विसर्जन की परंपरा वर्षों से चली आ रही है. कहते हैं जो भी अस्थियां ताप्ती नदी में विसर्जित की जाती हैं, वह पूरी तरह से पानी में घुल जाती हैं. हड्डियां बचती नहीं हैं .
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ताप्ती नदी, जिसे तापी नदी भी कहा जाता है, भारत के मध्य भाग में बहने वाली एक नदी है, जो नर्मदा नदी से दक्षिण में बहती है. भारत देश में केवल नर्मदा, ताप्ती और महि नदी ही मुख्य नदियाँ हैं जो पूर्व से पश्चिम बहती हैं. ताप्ती नदी मध्य प्रदेश राज्य के बैतूल जिले के मुलताई से उत्पन्न होकर सतपुरा पर्वतप्रक्षेपों के मध्य से पश्चिम की ओर बहती हुई महाराष्ट्र के खानदेश के पठार एवं सूरत के मैदान को पार करती है और गुजरात स्थित खम्बात की खाड़ी में गिरती है. यह नदी पूर्व से पश्चिम की ओर लगभग 740 किलोमीटर की दूरी तक बहती है और खम्बात की खाड़ी में जाकर मिलती है.
ताप्ती विश्व की एकमात्र नदी है जिसमें हड्डियों को भी गलाने की क्षमता है. यही वजह है कि देश के ज़्यादातर लोग अपने रिश्तेदारों का मृत्योपरांत अस्थि-विसर्जन में ही करने की अंतिम इच्छा रखते हैं. तापी महापुराण में भी इसका वर्णन किया है कि ताप्ती नदी में अस्थियां विसर्जन करने से अस्थियां पानी में घुल जाती हैं. ताप्ती के नागझिरी घाट पर भगवान श्री राम ने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था.
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पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य देव ने विश्वकर्मा की पुत्री संजना से विवाह किया था. संजना से उनकी 2 संतानें हुईं- कालिंदनी और यम. मान्यता है कि संजना को जब सूर्य की तपिश सहन नहीं हुई तब वे अपनी दासी छाया को पति की सेवा में सौंप कर तपस्या करने चली गईं.छाया ने संजना के रूप में काफी समय तक सूर्य की सेवा की. सूर्य से छाया को शनि और ताप्ती नामक दो संतानें हुईं. सूर्य ने अपनी पुत्री को आशीर्वाद दिया था कि वह विनय पर्वत से पश्चिम दिशा की ओर बहेगी.
रामायण के अनुसार, श्रीराम ने ताप्ती तट पर लक्ष्मण एवं माता सीता की उपस्थिति में पिता का तर्पण कार्य ताप्ती नदी में किया था और तब महाराज दशरथ की आत्मा को शांति मिली थी. श्रीराम ने ताप्ती तट पर बारह लिंग नामक स्थान पर विश्वकर्मा के सहयोग से 12 लिंगों की आकृति चट्टानों पर उकेरकर पिता की प्राण-प्रतिष्ठा की थी. बारहलिंग में आज भी श्रीराम एवं सीता की उपस्थिति के प्रमाण मौजूद हैं.
शास्त्रों में उल्लेखित है कि यदि अनजाने में भी किसी मृत देह की हड्डी ताप्ती में प्रवाहित हो जाएं तो उसे मुक्ति मिल जाती है. यही नहीं अकाल मृत्यु की शिकार बनी देह की अस्थियां ताप्ती जल में प्रवाहित करने से मृत आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है. यही नहीं ताप्ती के जल में बिना किसी विशेष विधि-विधान के किसी अतृप्त आत्मा को आमंत्रित कर उसे दोनों हाथों में जल लेकर उसकी शांति एवं तृप्ति का संकल्प कर जल में प्रवाहित कर दिया जाए तो मृतात्मा को मुक्ति मिल जाती है.