कैसे हुआ था सूर्यपुत्र कर्ण का जन्म

By Tami

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सूर्यपुत्र कर्ण का जन्म

धर्म संवाद / डेस्क : महाभारत में जिस तरह पांडवों और कौरवों का महत्त्व है उसी तरह सुर्यपुत्र कर्ण भी एक महत्वपूर्ण पात्र हैं। कर्ण कुंती के पुत्र थे।परन्तु उनका लालन पालन धृतराष्ट्र के सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा ने किया था।उनके जन्म और उनकी असलियत उनकी मृत्यु के समय दुनिया के सामने आई थी। चलिए जानते हैं कर्ण की जन्म कथा ।

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कर्ण का जन्म एक सामान्य इंसान के तौर पर नहीं हुआ था। दरअसल, कुंती यदुवंशी राजा शूरसेन की पुत्री थी।उन्होंने ऋषि दुर्वासा की खूब सेवा की। कुन्ती की सेवा से प्रसन्न हो कर दुर्वासा ऋषि ने उन्हें एक मन्त्र दिया जिसके प्रयोग से देवता उनके सामने प्रकट हो सकते हैं और उनकी मनोकामना पूरी कर सकते हैं। एक दिन कुन्ती ने उस मंत्र की सत्यता की जाँच करने के लिये एकान्त स्थान पर बैठ कर उस मंत्र का जाप कर सूर्यदेव का स्मरण किया। उसी क्षण सूर्यदेव वहाँ प्रकट हुएऔर उन्होंने उनसे पूछा कि वे क्या चाहती हैं। कुंती को बड़ा अस्चर्य हुआ। उन्होंने कहा कि,” मुझे आपसे किसी भी प्रकार की अभिलाषा नहीं है। मैंने तो केवल मंत्र की सत्यता परखने के लिये ही उसका जाप किया है।” कुन्ती के इन वचनों को सुन कर सूर्यदेव बोले, “हे कुन्ती! मेरा आना व्यर्थ नहीं जा सकता। मैं तुम्हें एक अत्यन्त पराक्रमी तथा दानशील पुत्र प्रदान करता हूँ।” उसके बाद उसके गर्भ से कवच-कुण्डल धारण किए एक पुत्र उत्पन्न हुआ। 

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उस वक़्त कुंती कुंवारी थी। समाज के भय से उन्होंने उस शिशु को गंगा नदी में बहा दिया। वह बालक बहता हुआ उस स्थान पर पहुँचा जहाँ पर धृतराष्ट्र का सारथी अधिरथ अपने अश्व को गंगा नदी में जल पिला रहा था। उसकी दृष्टि कवच-कुण्डल धारी शिशु पर पड़ी। अधिरथ और उसकी पत्नी राधा की कोई संतान नहीं थी इसलिये उसने बालक को अपने घर ले गया और उसे अपने पुत्र के जैसा पालने लगा। उस बालक के कान अति सुन्दर थे इसलिये उसका नाम कर्ण रखा गया।

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अधिरथ एक सारथी था, इसलिए वह कर्ण को भी रथ चलाना सिखाना चाहता था। पर कर्ण धनुर्विद्या सीखना चाहता था। उन दिनों, सिर्फ क्षत्रियों को शस्त्रों और युद्ध कला की शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार था। कर्ण क्षत्रिय नहीं था, इसलिए उसे किसी भी शिक्षक ने स्वीकार नहीं किया। उसने अपनी शस्त्र विद्या परशुराम जी से सीखी थी। वो अर्जुन के समान ही एक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बना। पर समाज उसे सूतपुत्र ही कहता था। परन्तु दुर्योधन ने उसे सम्मान दिया और उसे अपना मित्र बना लिया। जब कर्ण की मृत्यु का समय निकट था तब जाकर कुंती ने सबको उसका असल परिचय दिया था।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .