धर्म संवाद / डेस्क : रामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास रचित महाकाव्य है। यह अवधि भाषा में लिखी गई है। यह हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं। यह 16 वीं सदी में रची गई थी। इसमे भगवान श्रीराम और माता सीता की कहानी बताई हुई है। विशेषकर इसमे श्रीराम के चरित्र का बखान किया गया है। गोस्वामी जी ने रामचरित का अनुपम शैली में दोहों, चौपाइयों, सोरठों तथा छंद का आश्रय लेकर वर्णन किया है।
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शास्त्रों के अनुसार, एक रात जब तुलसीदासजी सो रहे थे, तो उन्हें भगवान शिव का सपना आया। सपने में भगवान शिव ने उन्हें आदेश दिया कि तुम भगवान राम पर एक महाकाव्य की रचना करो। तुरंत उनकी नीद टूट गई और उन्होंने सामने भगवान शिव और माता पार्वती को देखा। भगवान शिव ने कहा कि तुम जिस महाकाव्य की रचना करोगे, वह सामवेद की तरह फलवती होगी। कलयुग में भक्तजन इस महाकाव्य को पढ़कर मोक्ष की प्राप्ति करेंगे। महादेव के आदेशानुसार, वे श्रीराम के महाकाव्य की रचना करने बैठ गए। कहते हैं उन्होंने विक्रम संवत 1631 को रामनवमी के दिन रामचरितमानस की रचना आरंभ की थी।
मान्यता है कि तुलसीदासजी श्रीरामचरितमानस की रचना श्रीराम की नगरी अयोध्या में ही की थी । वे दिनभर संस्कृत में लिखते और अगले दिन सुबह सब लिखा हुआ मिट जाता , ऐसा 7 दिनों तक चलता रहा। 7 वे दिन तुलसीदास जी को भगवान शिव और माता पार्वती ने दर्शन देकर कहा कि आप इसे संस्कृत में ना लिखकर गांव की भाषा में लिखिए। उसके बाद उन्होंने श्री रामचरितमानस की रचना अवधि में की।
उसके बाद एक और समस्या उत्पन्न हुई रामचरितमानस को ग्रंथ का दर्ज नहीं मिल रहा था। काशी के विद्वानों का कहना था कि ग्रंथ संस्कृत में होते हैं। गांव की भाषा में लिखा गया कुछ भी ग्रंथ नहीं हो सकता । तब गोस्वामी तुलसीदास जी बोले यह ग्रंथ मैंने लिखा नहीं लिखा मुझसे तो लिखवाया गया है और तो ओर किसी और ने नहीं स्वयं भगवान विश्वनाथ ने कहा है लिखने के लिए। इसपर ब्राह्मणों ने कहा हम कैसे मान लें, गोस्वामी जी बोले निर्णय स्वयं बाबा विश्वनाथ करेंगे ।
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उसके बाद विश्वनाथ जी के मंदिर में श्रीरामचरितमानस को सबसे नीचे रखा गया और उनके ऊपर 18 पुराण और चारों वेद रखे गए , उसके बाद विश्वनाथ जी के चारों द्वार बंद कर दिए गए । रात भर गोस्वामी जी मंदिर के बाहर रोते रहे , जब सुबह भगवान विश्वनाथ की मंगला आरती करने के लिए मंदिर के कपाट खोले गए, तो ब्राह्मणों ने देखा श्रीरामचरितमानस जो सबसे नीचे रखा गया था वह सबसे ऊपर आ गया है । उसी पर भगवान शिव का हस्ताक्षर था। उसपर लिखा था “सत्यम शिवम सुंदरम”। अर्थात इसमे लिखा सब सत्य है और यह मानव जीवन के कल्याण का स्रोत है।”
आपको बता दे श्रीरामचरितमानस को लिखने में तुलसीदासजी को 2 साल 7 माह 26 दिन का समय लगा था और उन्होंने इसे संवत् 1633 के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम विवाह के दिन पूर्ण किया था। इस महाकाव्य में सात कांड हैं – बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड) और उत्तरकाण्ड ।