धर्म संवाद / डेस्क : सनातन धर्म में पूजा-पाठ करते समय परिक्रमा करने का विधान है। मान्यता है कि परिक्रमा करने से पापों का नाश होता है। शास्त्र कहते हैं भगवान की मूर्ति और मंदिर की परिक्रमा हमेशा दाहिने हाथ की ओर से शुरू करनी चाहिए, क्योंकि प्रतिमाओं में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर परिक्रमा का लाभ नहीं मिलता है। चलिए जानते हैं किस देवी-देवता की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए।
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शास्त्रों में बताया गया है सूर्य देव की सात, श्रीगणेश की चार, भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की चार, देवी दुर्गा की एक, हनुमानजी की तीन, शिवजी की आधी प्रदक्षिणा की जाती है। पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमाएं करना चाहिए।
परिक्रमा करने का मंत्र
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।
अर्थ – हमारे द्वारा जाने-अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए। परमपिता परमेश्वर मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें।परिक्रमा के दौरान अपने इष्ट देव के मंत्र का जाप करने से भी उसका शुभ फल मिलता है।मान्यता है कि परिक्रमा लगाने से इंसान को सभी कष्टों से छुटकारा और नकारत्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है। साथ ही शुभ फल की प्राप्ति होती है।