धर्म संवाद / डेस्क : हर देवी-देवता का अपना –अपना वाहन है. देवों के देव महादेव के वाहन नंदी हैं. गणेश जी के वाहन मूषक है.मातारानी का वाहन शेर है. उसी तरह भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ है. धर्म ग्रंथों के अनुसार, गरुड़ को पक्षिराज कहा जाता है.आकाश में बहुत ऊंचाई पर उड़कर भी वो पृथ्वी के छोटे-छोटे जीवों पर नज़र रख सकता है. कहते हैं भगवान विष्णु द्वारा ही उन्हें अमरत्व का वरदान दिया गया था. चलिए जानते पक्षिराज गरुड़ की कथा.
यह भी पढ़े : भगवान शिव का जन्म कैसे हुआ था, जाने अनोखी कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, गरुड़ की मां का नाम विनिता था .वे ऋषि कश्यप की पत्नी थीं. दरअसल , महर्षि कश्यप की 2 पत्नियां थी-विनीता और कद्रू. एक बार महर्षि ने दोनों से वरदान मांगने को कहा। कद्रू ने कहा, ‘महर्षि मैं एक हजार पराक्रमी और शक्तिशाली पुत्रों की मां बनना चाहती हूं.’ जब विनता को यह बात पता चली तो उसने महर्षि से वर मांगा कि ‘हे स्वामी मुझे तो एक ही पुत्र चाहिए, मगर वह पुत्र इतना ताकतवर हो कि कद्रू के सभी पुत्रों का नाश कर सके.’ महर्षि ने दोनों पत्नियों को वरदान दे दिए. इसके फलस्वरूप कद्रू ने एक हजार अंडे दिए और विनता ने गरुड़ को जन्म दिया.
गरुड़ एक विशाल, बलवान और अपने संकल्प को पूरा करने वाला पक्षी था. बताया जाता है एक बार नागों की माता कद्रू ने विनीता को दासी बना लिया था और गरुड़ को उन्होंने कहा कि अगर तुम स्वर्ग से अमृत ले आओगे तो मै तुम्हारी माँ को दस्ताव से मुक्त कर दूंगी. तब गरुड़ उड़कर स्वर्ग पहुंचे. वहां उन्होंने वहाँ पहुँच कर अमृत कलश को अपने मुंह में उठा लिया. सभी देवताओं ने उन्हें रोकने की खूब कोशिश की लेकिन वे असफल हुए. रास्ते में भगवान विष्णु प्रकट हुए. भगवान ने देखा कि, गरुड़ के मुंह में अमृत कलश होने के बाद भी उसने खुद अमृत नहीं पीया. उसके मन में जरा भी लालच नहीं था. भगवान विष्णु यह देखकर काफी खुश हुए. उन्होंने गरुड़ से इसके बारे में पूछा. गरुड़ ने सारी बातें बताई. भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर गरुड़ को वरदान दिया. इसके बाद गरुड़ ने भी भगवान विष्णु को कुछ मांगने को कहा, तब भगवान विष्णु ने गरुड़ को अपना वाहन बनने को कहा. इसके बाद से ही भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ हैं.
जब देवताओं को ये बात पता चली तब उन्होंने गरुड़ से प्राथना की और कहा कि आप हमें अमृत वापस लाने में सहायता करे. गरुड़ मान गए. उन्होंने जा कर अमृत माता कद्रू को दे दिया और माता कद्रू ने गरुड़ की माँ को मुक्त कर दिया उसके बाद इंद्र देव आकर अमृत कलश वापस ले गए.