धर्म संवाद / डेस्क : भारत में सैंकड़ो मंदिर है. उनमे से कई मंदिर महाभारत कालीन भी है. वैसा ही एक मंदिर है महाभारत के पात्र कर्ण का. जी हा चमोली के कर्णप्रयाग में स्थित है दानवीर कर्ण का मंदिर. मान्यता है कि कर्ण के नाम पर ही इस जगह का नाम कर्णप्रयाग पड़ा. यहां अलकनंदा और पिंडर नदी के पास दानवीर कर्ण का मंदिर स्थित है.
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माना जाता है यह स्थान कभी जल के अंदर था और वहां पर कर्ण शिला नामक एक पत्थर का कोना ही जल के बाहर उभरा हुआ दिखता था.वहीं, एक दूसरी कहावत के अनुसार, कर्ण ने इसी स्थान पर अपने पिता सूर्यदेव की आराधना की थी.तब भगवान सूर्य कर्ण की तपस्या से प्रसन्न हुए थे और उन्हें अभेद्य कवच-कुंडल और अक्षय धनुष प्रदान किए थे.साथ ही कहा जाता है कि कर्णप्रयाग वह स्थान है, जहां भगवान कृष्ण ने कर्ण को उनकी मृत्यु के बाद दफनाया था.
ऋषिकेश से कर्णप्रयाग की कुल दूरी 172 किमी है । कटतम रेलवे स्टेशन कर्णप्रयाग में स्थित है जबकि देहरादून में जॉली ग्रांट निकटतम हवाई अड्डा 213 किलोमीटर है। मंदिर आने वाले तमाम श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है. यहां हर साल कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है.