धर्म संवाद / डेस्क : सूर्य के बिना जीवन असंभव है। सूर्य जीवन का स्रोत है, जो ऊर्जा और प्रकाश प्रदान करता है। बिना सूर्य देव की रोशनी से बादलों का निर्माण नहीं होगा। फलस्वरूप, वर्षा नहीं होगी। सूर्य की ऊर्जा खेती के लिए आवश्यक है, जो फसलों की वृद्धि और उत्पादन को बढ़ावा देती है। धार्मिक मान्यता है कि, सूर्य देव की पूजा करने से मान-सम्मान, प्रतिष्ठा बढ़ती है। यही कारण है कि हमारे पूर्वज सूर्य को भगवान समान दर्जा देते थे। भगवान सूर्य के कई मंदीर भी मौजूद है। चलिए जानते हैं सूर्य देव को समर्पित कुछ मंदिरों के बारे में ।
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कोणार्क सूर्य मंदिर: यह ओडिशा के पुरी जिले में स्थित है और इसका निर्माण 13वीं शताब्दी में हुआ था। यह मंदिर अपनी अद्वितीय वास्तुकला और सूर्य देव की पूजा के लिए प्रसिद्ध है । इस मंदिर की खासियत है कि सूर्योदय की पहली किरण मंदिर के मेन गेट से टकराती है। यह विशाल मंदिर एक बड़े से रथ और पत्थर के पहियों के आकार में बनाया गया है। यहां सूर्योदय की पहली किरण मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार से टकराती है।
मार्तंड सूर्य मंदिर: यह कश्मीर में स्थित है और इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था। इस मंदिर को कर्कोटा वंश के राजा ललितादित्य मुक्तापिदा ने करवाया था। हालांकि इसे 15वीं शताब्दी में शासक सिकंदर बुतशिकन ने नष्ट कर दिया था। मार्तंड मंदिर एक पठार के ऊपर बनाया गया था जहाँ से पूरी कश्मीर घाटी को देखा जा सकता है। खंडहरों और संबंधित पुरातात्विक निष्कर्षों से, यह कहा जा सकता है कि यह कश्मीरी वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना था, जिसने गंधारन, गुप्त और चीनी वास्तुकला के रूपों को मिश्रित किया था।
मोधेरा सूर्य मंदिर: यह गुजरात में स्थित है और इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। इसे सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम ने 1026 ई. में बनवाया था। मोढेरा का सूर्य मंदिर दो हिस्से में बना है, जिसमें पहला हिस्सा गर्भगृह का और दूसरा सभामंडप का है। वहीं, मंदिर का निर्माण ऐसा किया गया है कि सूर्योदय के समय सूर्य की किरणें सीधे गर्भगृह में पड़ती हैं।
कटारमल सूर्य मंदिर: यह उत्तराखंड में स्थित है और इसका निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था। स मंदिर को घेरे 44 अन्य छोटे-छोटे मंदिर हैं। इन अन्य मंदिरों में भगवान शिव, पार्वती, लक्ष्मीनारायण आदि भगवानों की मूर्तियों को स्थापित किया गया है।
रनकपुर सूर्य मंदिर: यह राजस्थान में स्थित है और इसका निर्माण 15वीं शताब्दी में हुआ था। इस सूर्य मंदिर में, भगवान सूर्य की रथ पर सवार मूर्ति दिखायी गयी है मंदिर की दीवारों पर योद्धाओं, घोड़ों और स्वर्गीय पिंडों की अद्भुत नक्काशी हुई है जो विगक युग के लोगों की कलात्मक उत्कृष्टता का प्रतिनिधित्व करती है। इसके गर्भगृह से पहले एक अष्टकोटनीय मंडप है। अष्टकोटनीय मंडप में छह बरामदे हैं।
सूर्यनारायण मंदिर, आंध्र प्रदेश : यह मंदिर 7वीं सदी में कलिंगा वंश के राजा देवेंद्र वर्मा ने बनवाया था। भगवान सूर्यनारायण स्वामी की छवि यहां एक ऊंचे ग्रेनाइट के टुकड़े पर बनाई गई है। सूर्य देवालयम को इस तरह से विशिष्ट रूप से डिजाइन किया गया है कि सूर्य की किरण साल में दो बार मूर्ति के पैर छूती है।
बेलाउर सूर्य मंदिर, बिहार : बिहार के भोजपुर जिले के बेलाउर गांव के पश्चिमी एवं दक्षिणी छोर पर स्थित बेलाउर सूर्य मंदिर काफी पुराना है, जिसे राजा द्वारा बनवाए 52 पोखरों में से एक पोखर के बीच में यह सूर्य मंदिर बना हुआ है। कहा जाता है कि सच्चे मन से इस जगह पर छठ व्रत करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
झालरापाटन सूर्य मंदिर: झालरापाटन का यह सूर्य मंदिर करीब 11वीं सदी में बनाया गया था। इस मंदिर की परंपरा है कि हर साल विजयादशमी के अवसर पर मंदिर की पुरानी पताका को हटाकर नई ध्वज स्थापित की जाती है। इस मंदिर के शिखर की ऊंचाई 110 फीट ऊंची है।
ओसियां का सूर्य मंदिर, राजस्थान : राजस्थान के ओसियां शहर की स्थापना प्रतिहार वंश के राजपूत राजा राजपूत उत्तपलीदोव ने की थी। ओसियां को राजस्थान का खजुराहो भी कहा जाता है। इस मंदिर में हालांकि कि भगवान की मूर्ति नहीं है, और समय की मार से यह प्रभावित भी हुआ है, लेकिन यह आज भी अपनी बनावट, आकार और शैली के कारण आकर्षण का केंद्र है।