अघोरी साधुओं और नागा साधुओं में अंतर

By Tami

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Naga Sadhu and Aghori Sadhu

धर्म संवाद / डेस्क : नागा साधु और अघोरी बाबा एक जैसे ही लगते हैं परंतु दोनों में अंतर है। दोनों साधुओं के रहन सहन, खान – पान, साधना भिन्न होते हैं। दोनों ही अपने रहस्यमयी जीवन के लिए प्रसिद्ध हैं परंतु दोनों की जीवनशैली में काफी अंतर होता है। चलिए जानते हैं।

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साधना
नागा साधु मुख्य रूप से भगवान शिव या विष्णु के उपासक होते हैं।  जबकि अघोरी साधु भगवान शिव के भैरव रूप के उपासक होते हैं। नागा साधु वैदिक परंपरा के अंतर्गत आते हैं और घोरी साधु तांत्रिक परंपरा का अनुसरण करते हैं। नागा साधुओं का मुख्य उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना, धर्म की रक्षा करना और मोक्ष की प्राप्ति है। वहीं, अघोरियों का उद्देश्य शरीर और संसार के पार जाकर स्वयं को परम सत्य से जोड़ना है। नागा साधु हिंदू धर्म की रक्षा के लिए परंपरागत रूप से योद्धा भी माने जाते हैं, जबकि सामाजिक मान्यताओं को पार कर अघोर साधना करते हैं।  अघोरी तीन तरह की साधना करते हैं – शव साधना, शिव साधना और श्मशान साधना।

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रहवास
 अघोरी साधु श्मशान भूमि में रहते हैं और वहीं साधना करते हैं। वे शवों की राख अपने शरीर पर लगाते हैं और कभी-कभी मानव खोपड़ी (कपाल) का उपयोग कटोरी के रूप में करते हैं।  नागा साधु  भारत के विभिन्न धार्मिक स्थलों पर निवास करते हैं। वहीं, अघोरी साधु ज्यादातर वाराणसी, श्मशान घाट और ऐसे स्थानों पर रहते हैं जहां मृत्यु से जुड़ी साधना की जा सके। नेपाल के काठमांडू स्थित अघोर कुटी, अघोरी साधुओं के प्राचीन स्थानों में से एक है। वहीं भारत में सिद्धपीठ कालीमठ, पश्चिम बंगाल के रामपुरहाट में तारापीठ मंदिर को अघोरी साधुओं का प्रमुख स्थान कहा जाता है। इसी तरह यूपी का चित्रकूट, जहां भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। वह अंत में घर छोड़कर मोक्ष की तलाश में अघोरी बन गए, उनके मंदिर में दर्शन के लिए भी अघोरी साधु चित्रकूट आते हैं।  

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गुरु
गुरु की दीक्षा के बाद ही कोई नागा साधु बनता है। वहीं, दूसरी तरफ अघोरी बनने के लिए कोई गुरु की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि उनके गुरु स्वयं भगवान शिव होते हैं।


भोजन
नागा साधु मांसाहारी और शाकाहारी दोनों होते हैं, लेकिन मान्यताओं के अनुसार, अघोरी न केवल जानवरों का मांस खाते हैं बल्कि श्मशान में ये मुर्दों का मांस भी भक्षण करते हैं। नागा साधु भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करते हैं और जो भी मिलता है, उसमें संतुष्टि रखते हैं। नागा साधुओं को एक दिन में सिर्फ सात घरों से भिक्षा मांगने की इजाजत होती है। अगर उनको इन घरों में भिक्षा नहीं मिलती है, तो उनको भूखा ही रहना पड़ता है। नागा संन्यासी दिन में सिर्फ एक बार ही भोजन करते हैं। वही अघोरियों का मानना है कि चिता के मांस  को भी खाया जा सकता है । वे कहते हैं कि सब प्रकृति है और उस मांस को कोई छूता तक नहीं है, ऐसे में उसे खाने में कोई बुराई नहीं है।

साधना की प्रक्रिया
नागा साधु और अघोरी बाबा को काफी कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। साधु बनने में लगभग इनकों 12 साल का वक्त लगता है। नागा साधु बनने के लिए अखाड़ों में रहा जाता है और कठिन से कठिन परीक्षाएं देनी पड़ती हैं। परन्तु अघोरी बनने के लिए श्मशान में तपस्या करनी पड़ती है और जिंदगी के कई साल काफी कठिनता के साथ श्मशान में गुजारने पड़ते हैं।

वस्त्र
नागा साधु अक्सर नग्न रहते हैं और अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। आमतौर पर अघोरी काले वस्त्र पहनते हैं या कई निर्वस्त्र भी रहते हैं। अघोरी श्मसान की राख शरीर पर लगाते हैं। अघोरी बाबा जानवरों की खाल या किसी सामान्य कपड़े से शरीर का निचला हिस्सा ढकते हैं। वह काला कपड़ा ही धारण करते हैं। 

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .