धर्म संवाद / डेस्क : महाभारत में कई बार कौरवों ने पांडवों को मारने का प्रयास किया है। कई षड्यंत्र रचे गए थे पर लाक्षाग्रह का षड्यंत्र सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण है। दुर्योधन की यह योजना बहुत ही खतरनाक थी। इस योजना के मुताबिक पाँचों पांडव समेत उसकी माता को भी मारना था यानि दुर्योधन ने पांडवों को परिवार सहित खत्म करने की योजना तैयार की। चलिए जानते है इस षड्यंत्र की पूरी जानकारी।
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लाक्षागृह असल में एक भवन था जिसे लाख से निर्मित किया गया था ताकि पांडव जब इस घर में रहने आएं तो चुपके से इसमें आग लगा कर उन्हें मारा जा सके। लाख एक ऐसा पदार्थ होता है जो आग को बहुत जल्दी पकड़ लेता है। दुर्योधन ने शकुनि के साथ मिलकर इस साजिश को अंजाम दिया था।अपनी योजना को सफल बनाने के लिए दुर्योधन ने पिता का भी सहारा लिया। धृतराष्ट्र ने दुर्योधन से पांडवों के रुकने के लिए उचित स्थान का प्रबंध करने को कहा। दुर्योधन ने वर्णावत चलने की बात कही। उधर मामा शकुनि ने वर्णावत में लाक्षागृह बनवा दिया था। इसके पीछे दुर्योधन की सोच यह थी जब पांडव इस महल में गहरी नींद में सो जाएंगे तो इसमें आग लगा दी जाएगी, जिससे यह महल तुरंत ही जलकर राख हो जाए और किसी को बच निकलने का कोई मौका न मिले।
इस योजना की जानकारी सिर्फ दुर्योधन को ही थी और वे विदुर, द्रोण, कृपाचार्य और भीष्म पितामह को इसका पता नहीं चले इसके लिए चारों और अपने गुप्तचर लगा देता है। लेकिन किसी तरह विदुर को अपने एक गुप्तचर से ये सब पता चल जाता है पर तब तक पांडव और माता कुंती निकल चुके होते हैं। तब विदुर महल से नदी तक की एक सुरंग बनवाने का कार्य प्रारंभ करवा देता है ताकि रात्रि में महल में आग लगाई जाए तो पांडव उस सुरंग से सुरक्षित बाहर निकल आएं।
दुर्योधन ने वारणावत में पांडवों के निवास के लिए पुरोचन नामक शिल्पी को लाक्षाग्रह में आग लगाने का कार्य सौंपा था। कहते हैं कि जिस दिन पुरोचन ने आग प्रज्वलित करने की योजना बनाई थी, उसी दिन पांडवों ने गांव के ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन के लिए आमंत्रित किया। रात में पुरोचन के सोने पर भीम ने उसके कमरे में आग लगाई। धीरे-धीरे आग चारों ओर लग गई। लाक्षागृह में पुरोचन तथा अपने बेटों के साथ भीलनी जलकर मर गई। लाक्षागृह के भस्म होने का समाचार जब हस्तिनापुर पहुँचा तो कौरवों को यही लगा कि पांडवों की मृत्यु हो गयी है।
कहा जाता है कि महारानी कुंती के कक्ष में एक सेविका थी तो बाकी पांडवों के कक्ष में एक एक सेवक नियुक्त था वे सभी जलकर मारे गए तो उन्हें ही कुंती और पांडव समझ लिया गया था। यह भी कहा जाता है कि पांडवों की जगह एक निषाद स्त्री और उसके पांच पुत्र जल गए थे। कौरवों ने उन्हें ही पांडव और कुंती समझकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया।
आपको बता दे बरनावा हिंडनी (हिण्डन)और कृष्णा नदी के संगम पर बागपत जिले की सरधना तहसील में मेरठ (हस्तिनापुर) से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी स्थित है। आज भी बरनावा गांव में महाभारतकाल का लाक्षागृह टीला है। यहीं पर एक सुरंग भी है। यहां की सुरंग हिंडनी नदी के किनारे पर खुलती है। टीले के पिलर तो कुछ असामाजिक तत्वों ने तोड़ दिए और उसे वे मजार बताते थे। यहीं पर पांडव किला भी है जिसमें अनेक प्राचीन मूर्तियां देखी जा सकती हैं।
गांव के दक्षिण में लगभग 100 फुट ऊंचा और 30 एकड़ भूमि पर फैला हुआ यह टीला लाक्षागृह का अवशेष है। इस टीले के नीचे 2 सुरंगें स्थित हैं। वर्तमान में टीले के पास की भूमि पर एक गौशाला, श्रीगांधीधाम समिति, वैदिक अनुसंधान समिति तथा महानंद संस्कृत विद्यालय स्थापित है।