बृहदेश्वर मंदिर: बिना आधुनिक औजारों के बना यह अद्भुत मंदिर आज के समय में भी नहीं बन सकता

By Tami

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बृहदेश्वर मंदिर

धर्म संवाद डेस्क : बृहदेश्वर मंदिर भारत का एक प्रमुख मंदिर है, जो की  तमिलनाडु के तंजावुर (तंजोर) में स्थित एक प्राचीन मंदिर है, जिसका निर्माण राजा चोल (I) द्वारा 1010 ईस्वी में करवाया गया था। बृहदेश्वर भगवान शिव को समर्पित एक प्रमुख मंदिर है जिसमें उनकी नृत्य की मुद्रा में मूर्ति स्थित है जिसको नटराज कहा जाता है।

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इस मंदिर की वास्तुकला सच में हैरान कर देने वाली है। 130,000 टन से अधिक ग्रेनाइट का उपयोग से बने इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण 216 फीट लंबा टॉवर है जो मंदिर के गर्भगृह के ऊपर बनाया गया है। इस मंदिर में एक और हैरान कर देने वाली चीज नंदी बैल की प्रतिमा है जिसकी उंचाई लगभग दो मीटर, लंबाई में छह मीटर और चौड़ाई में ढाई मीटर है। इस प्रतिमा का बजन लगभग 20 टन है। प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम  के विभिन्न आसन मंदिर की ऊपरी मंजिल की बाहरी दीवारों पर उकेरे गए हैं।

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इस मंदिर में कई शासको जैसे पांड्य, विजयनगर शासक और मराठा ने कई मंदिर जोड़ें हैं। इस मंदिर की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि मंदिर की छाया दोपहर के समय कभी भी जमीन पर नहीं गिरती है। मंदिर की वास्तुकला इतनी चतुराई से की गई है कि जब सूरज अपने चरम पर होता है तो मंदिर जमीन पर कोई छाया नहीं डालता है। इस रहस्य को जानने के लिए दुनिया भर से हजारों पर्यटकों और वास्तुकला प्रेमी को आकर्षित करती है।

चोल शासकों ने इस मंदिर को राजराजेश्वर नाम दिया था परंतु तंजौर पर हमला करने वाले मराठा शासकों ने इस मंदिर को बृहदीश्वर नाम दिया। इस मंदिर के आराध्य देव भगवान शिव हैं। मुख्य मंदिर के अंदर 12 फीट ऊँचा शिवलिंग स्थापित है।मुख्य मंदिर और गोपुरम निर्माण की शुरु से यानि 11वीं सदी के बने हुए हैं। इसके बाद मंदिर का कई बार निर्माण, जीर्णोद्धार और मरम्मत हुआ है। युद्ध और मुगल शासकों के आक्रमण और तोड़-फोड़ से हुई मंदिर को क्षति हुई। बाद में जब हिन्दू राजाओं ने पुनः इस क्षेत्र को जीत लिया तो उन्होंने इस मंदिर को ठीक करवाया ।

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मंदिर का ज्यादातर भाग कठोर ग्रेनाईट पत्थर से और  बाकी हिस्सा सैंडस्टोन की चट्टानों से बनाया गया है। उस इलाके में ग्रेनाईट पत्थर से 60 किलोमीटर की दूरी पर मिलता है।इतनी लम्बी दूरी से इतनी बड़ी मात्रा में और इतने विशाल आकार के पत्थरों को मंदिर निर्माण स्थल तक कैसे लाया गया, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। मंदिर के आस-पास कोई पहाड़ भी नहीं है, जिससे पत्थर लिए जाने की सम्भावना हो। ग्रेनाइट की चट्टानें इतनी कठोर होती हैं कि उन्हें कटाने, छेद करने के लिए खास हीरे के टुकड़े लगे औजार का प्रयोग करना पड़ता है। उस काल में बिना आधुनिक औजारों के मंदिर में लगी चट्टानों को कैसे तराश कर महीन, कलात्मक मूर्तियां बनाई गयी होंगी, यह एक आश्चर्य का विषय है।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .