Do you want to subscribe our notifications ?

अंगुलिमाल डाकू : यह महान संत अंगुलियां काटकर गले में पहना करता था

By Tami

Published on:

अंगुलिमाल डाकू

धर्म संवाद / डेस्क : हमारे भारत देश में कई महान संत हुए। उन्मे से कुछ को बचपन से ही अध्यात्म में रुचि हुआ करती थी। परंतु कुछ ऐसे भी संत हुए जिनके जीवन में भक्ति, ईश्वरत्व और आध्यात्म बाद में आया। उन्ही कुछ लोगों में से एक भयानक डाकू हुआ करता था जो लोगों की अंगुलियाँ काट कर गले में पहना करता था । उसे सब अंगुलीमाल डाकू कहकर बुलाते थे।

लगभग 500 ईसा पूर्व कोशल देश की राजधानी श्रावस्ती में एक ब्राह्मण पुत्र का जन्म हुआ। जन्म के बाद ही एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की कि यह बालक हिंसक प्रवृत्तियों वाला होगा। यहाँ तक कि वह हत्यारा डाकू भी बन सकता है। माता-पिता ने उसका नाम ‘अहिंसक’ रखा और उसे तक्षशिला विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्ति के लिए भेजा। अहिंसक बड़ा मेधावी छात्र था और आचार्य का परम प्रिय भी था। उसके गुणों से केवल गुरु ही नहीं बल्कि आचार्य की पत्नी यानी गुरुमाता भी प्रसन्न रहती थीं. इस वजह से अहिंसक के कुछ साथियों को उससे ईर्ष्या होने लगी.उन्होंने ईर्ष्यावश आचार्य से कह दिया कि अहिंसक गुरुमाता के प्रति कुदृष्टि रखता है।

यह भी पढ़े : दक्ष प्रजापति को बकरे का ही सर क्यों लगाया गया

यह सुनकर आचार्य ने क्रोधित होकर उससे कहा कि  तुममे ब्राह्मण पुत्र कहलाने की योग्यता नहीं है। साथ ही आचार्य ने अहिंसक को आदेश दिया कि तुम्हारी अंतिम शिक्षा तभी पूरी होगी, जब तुम सौ व्यक्तियों की ऊंगलियां काटकर लाओगे और तभी तुम्हें दीक्षा मिलेगी। आचार्य के आदेश का पालन करने हेतु अहिसक हत्यारा बन गया।

आचार्य के आदेश पर वह लोगों को मारकर उनकी ऊंगलिया काटने लगा।वह श्रावस्ती के जंगल में जाकर लोगों की हत्याएं करने लगा। वह जितनी हत्याएं करता था उनकी ऊंगलिया काटकर उसे मालाओं में पिरो लेता था, जिससे हत्याओं की गिनती की जा सके और ऊंगलिया गायब न हो। इसी वजह से लोग उसे अंगुलिमाल डाकू कहकर बुलाने लगे।  उसकी दरिंदगी इतनी ज्यादा बढ़ गई कि हर कोई उस इलाके से भयभीत रहने लगा।

एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ उस राज्य से गुजर रहे थे। वहां के लोगों में खौफ देखकर भगवान बुद्ध ने उनसे इसकी वजह पूछी। लोगों ने कहा कि हमारे पास के जंगल में अंगुलिमाल नाम का एक भयानक डाकू रहता है। वह लोगों को मारकर उनकी उंगलियों की माला पहनता है। अब तक वो 99 लोगों को मार चुका है। इस वजह से हर कोई अब उस जंगल के पास से गुजरने से डरता है।

इन सभी बातों को सुनने के बाद भगवान बुद्ध ने उसी जंगल के पास जाने का फैसला ले लिया।  तब लोगों ने महात्मा बुद्ध को उसके पास जाने से मना कर दिया। उन्होंने कहा , आप क्यों अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं। मगर बुद्ध ने कहा कि वह उस डाकू से जरूर मिलेंगे।बुद्ध की यह जिद देखकर उनके शिष्य भी भयभीत हो गए। फिर बुद्ध अकेले ही जंगल की ओर निकल पड़े। अंगुलिमाल की दूर से उनपर नजर पड़ गई। वह भी सोचने लगा कि इस जंगल में 50-100 लोग भी एक साथ आने से डरते हैं और एक संन्यासी अकेला चला आ रहा है, आखिर क्यों?

अंगुलिमाल ढ़ाल-तलवार और तीर-धनुष लेकर भगवान की तरफ दौड़ पड़ा। फिर भी वह उन्हें नहीं पा सका। अंगुलिमाल सोचने लगा – ‘आश्चर्य है! मैं दौड़ते हुए हाथी, घोड़े, रथ को पकड़ लेता हूं, पर मामूली चाल से चलने वाले इस संत को नहीं पकड़ पा रहा हूं! यह कैसे संभव है।  अंगुलिमाल तुरंत गौतम बुद्ध के पास तेजी से दौड़कर पहुंचने लगा। बुद्ध ने अंगुलिमाल को देख लिया मगर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह अपने कदम बढ़ाकर चलते रहे। यह देखकर अंगुलिमाल रुक गया। अंगुलिमाल ने बुद्ध से कहा कि हे संन्यासी! तुम्हें मुझसे डर नहीं लगता क्या? मैंने न जाने कितने ही लोगों को मौत के घाट उतारा है। मेरे गले में लटकी यह माला इस बात की गवाह है। 

यह भी पढ़े : गौतम बुद्ध द्वारा दिए गए कुछ अमूल्य उपदेश, पालन करने पर जीवन हो जाएगा बेहतर

भगवान बुद्ध ने कहा, कि तुझसे भला मैं क्यों डरूं? यह बात सुनकर अंगुलिमाल का क्रोध और बढ़ गया। उसने कहा, ‘मैं चाहूं तो अभी तुम्हारी सिर धड़ से अलग कर दूं।’ बुद्ध बोले कि मैं तुझ जैसे कायर से नहीं डरता। मैं उससे डरूंगा जो वास्तव में ताकतवर है। अंगुलिमाल अचरज में पड़ गया। उसने बुद्ध से कहा कि शायद तुम्हें मेरी ताकत का अंदाजा नहीं है। तभी बुद्ध बोले कि अगर तू वास्तव में ताकतवर है तो जा इस पेड़ की 10 पत्तियां तोड़कर ला। अंगुलिमाल की हंसी फूट पड़ी। वह राक्षसों की तरह जोर-जोर से हंसने लगा और बोला- बस! सिर्फ 10 पत्तियां? अरे पत्तियां तो क्या, मैं पूरा पेड़ ही उखाड़ ले आता हूं। बुद्ध ने कहा कि पूरा पेड़ उखाड़ने की कोई जरूरत नहीं है। सिर्फ उसकी दस पत्तियां तोड़कर लाओ।

अंगुलिमाल तुरंत पेड़ के पास पहुंचा और दस पत्तियां तोड़कर वापस बुद्ध के सामने आ गया। उसके चेहरे पर हंसी अब भी खिल रह थी। अब बुद्ध ने बोला कि जाओ इन पत्तियों को जहां से तोड़ा है वहां वापस जोड़ दो। अंगुलिमाल की हंसी अचानक गायब हो गई। उसने कहा, ‘ये कैसे हो सकता है? एक बार टूटने के बाद पत्तियां वापस कैसे पेड़ से जुड़ सकती हैं?

फिर बुद्ध ने अंगुलिमाल से कहा कि उस चीज को तोड़कर कोई ताकतवर नहीं होता, जिसे वापस न जोड़ा जा सके। तू इंसान का सिर धड़ से अलग कर सकता है, लेकिन उसे वापस नहीं जोड़ सकता। असली ताकत तो उसमें होती है जो टूटे हुए को वापस जोड़ दे।

अंगुलिमाल भगवान बुद्ध की बातें सुनकर वह चुप हो गया । उसके पास कहने को कुछ नहीं था। उसे खुद से ग्लानि होने लगी कि वह वास्तव में ताकतवर नहीं है। अगले ही पल अंगुलिमाल गौतम बुद्ध के पैरों में पड़ गया और कहने लगा कि उन्होंने उसकी आंखें खोल दी हैं। अंगुलिमाल ने बुद्ध से उनकी शरण में लेने का आग्रह किया। बुद्ध ने अंगुलिमाल को अपना शिष्य बना दिया और बाद में वह संत बन गया।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .

Exit mobile version