धर्म संवाद / डेस्क : भगवान विट्ठल, जिन्हें विठोबा, पांडुरंग या विठ्ठलनाथ भी कहा जाता है, महाराष्ट्र और कर्नाटक के भक्ति आंदोलन में अत्यंत पूज्य देवता हैं। उन्हें भगवान कृष्ण का ही एक रूप माना जाता है। उनकी मूर्ति पंढरपुर के प्रसिद्ध मंदिर में स्थापित है, जहाँ वे भक्तों को अपने दोनों हाथ कमर पर रखे हुए मुद्रा में दर्शन देते हैं। भगवान विट्ठल के रूप-रंग, वस्त्र और आभूषणों में कई गूढ़ अर्थ छिपे हैं, जिनमें उनके कानों में पहनी मछली की आकृति वाली बालियाँ (मीन-कुंडल) विशेष रूप से ध्यान आकर्षित करती हैं।
यह भी पढ़े : कुंती ने क्यों मांगा भगवान कृष्ण से दुख और विपत्ति
भगवान विट्ठल की इतनी बड़ी मछली की बालियों का कारण भक्ति से जुड़ा हुआ है। किंवदंतियों के अनुसार, एक बार एक गरीब मछुआरा अपार श्रद्धा के साथ भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए पंढरपुर आया। वह अपनी दिनभर की मेहनत से पकड़ी गई ताज़ी मछलियाँ भगवान को भेंट करना चाहता था। लेकिन जब वह मंदिर परिसर में पहुँचा, तो कुछ उच्च वर्ग के लोगों और पुजारियों ने उसका विरोध किया। उन्होंने यह कहकर उसे रोक दिया कि मछलियाँ अपवित्र हैं और मंदिर में ले जाना पाप माना जाएगा। उन्होंने मछुआरे को अपमानित किया और मंदिर से बाहर जाने को कहा।
इस पर गरीब मछुआरे ने जवाब दिया, “मैं यहाँ भगवान से मिलने आया हूँ। मैं एक गरीब आदमी हूँ और मछली पकड़ना मेरा पेशा है। मेरे पास अपने भगवान के लिए उपहार खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं, मेरे पास बस ये दो मछलियाँ हैं जिन्हें मैंने पकड़ा है और मैं उन्हें अपने भगवान को उपहार देना चाहता था, कृपया मुझे कम से कम उन्हें देखने की अनुमति दें” लेकिन पुजारियों ने उसकी एक नहीं सुनी और उसे मंदिर के बाहर ही खड़ा कर दिया।
मछुआरा वहीं खड़े रहा और रोने लगा। उसने विट्ठल से प्रार्थना की कि वह उसका प्रसाद स्वीकार कर ले। उसकी भक्ति इतनी थी कि भगवान विट्ठल गर्भगृह से बाहर चले आए और उसकी मछली को स्वीकार कर लिया। उसके बाद उन्होंने मछलियों को अपने कानों के कुंडल के रूप में पहन लिया। “मैं किसी भी ऐसे व्यक्ति से कुछ भी स्वीकार करूंगा जो अपने दिल में प्रेम और भक्ति के साथ मेरे पास आता है, आखिरकार प्रेम ही ब्रह्मांड की भाषा है। उस गरीब मछुआरे को देखिए, बिना खाना खाए भी वह प्रेम, करुणा और भक्ति के साथ यह उपहार लेकर मेरे पास आया। मैं हमेशा से ही हर उस व्यक्ति के लिए उपलब्ध था, हूँ और रहूँगा जो मदद के लिए मेरे पास आता है, चाहे उसकी पृष्ठभूमि, जाति, धर्म और पंथ कुछ भी हो। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि यह प्रेम ही है और केवल प्रेम ही है जो आपको बदल सकता है, आपको ठीक कर सकता है और आपको आध्यात्मिक ऊँचाई तक पहुँचा सकता है।”
तब से ही भगवान विट्ठल अपने कानों में मछली की बालियाँ पहनते हैं। यह कथा भक्ति में समानता, सच्चे हृदय की स्वीकृति, और सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध ईश्वर की करुणा का संदेश देती है। भगवान विट्ठल ने यह सिद्ध कर दिया कि वे केवल पवित्र अनुष्ठानों से नहीं, बल्कि निर्मल मन और निष्कलंक प्रेम से प्रसन्न होते हैं।






