धर्म संवाद / डेस्क : पूरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ की पूजा की जाती है। भगवान जगन्नाथ को श्री कृष्ण का ही एक रूप माना जाता है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा विराजमान है। साल में एक बार भगवान रथों पे सवार होकर मंदिर के बाहर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं और गुंडीचा मंदिर जाते हैं। इस अनुस्थान को रथ यात्रा के नाम से जाना जाता है। साल भर इस त्योहार के सभी को इंतज़ार रहता है । परंतु क्या आप जानते हैं रथ यात्रा से पहले भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं और उनका इलाज चलता है।
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दरअसल, हर साल ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को एक साथ स्नान कराया जाता है। इसे देव स्नान पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा को एक साथ 108 घड़ों के जल से सहस्त्र धारा स्नान कराया जाता है। स्नान वाले जल में फूल, चंदन, केसर और कस्तूरी भी मिलाया जाता है, जिसके बाद भगवान को सादा बेश बनाते हैं और दोपहर में हाथी बेश पहना कर भगवान गणेश के रूप में तैयार करते हैं। माना जाता है कि 108 घड़ों के जल से स्नान करने के बाद भगवान बीमार हो जाते हैं इसलिए 14 दिनों तक वे भक्तों को दर्शन नहीं देते।
मान्यताएँ कुछ ऐसी हैं कि भगवान को बुखार में आराम की आवश्यकता होती है। साथ ही संक्रमण और लोगों में न फैले, इसके लिए भगवान जगन्नाथ, भगवान बालभद्र और देवी सुभद्रा को अनासर घर में रखा जाता है। इस बीच एक मरीज की तरह उनका उपचार चलता है। डॉक्टर आकार उनकी जांच भी करते हैं। उनको दवाई के रुप में काढ़ा दिया जाता है। 15वें दिन यानि कि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन मंदिर के कपाट खुलते हैं, जिसे नेत्र उत्सव के नाम से जानते हैं। इसके अगले दिन यानि कि आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा शुरू कर दी जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पूरी में भगवान श्री जगन्नाथ के एक भक्त माधव दास जी रहते थे। एक बार माधव दास जी को अतिसार (उलटी-दस्त) से पीड़ित हो गए थे। वे इस रोग के कारण बहुत दुर्बल हो गए थे । वे उठ-बैठ भी नहीं पा रहे थे।तब श्री जगन्नाथ जी स्वयं सेवक बनकर इनके घर पहुंचे और स्वयं माधव दास जी की सेवा की।
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जब माधव दास जी को होश आया तब उन्होंने भगवान जगन्नाथ को पहचान लिया। एक दिन श्री माधव दास जी ने प्रभु से पूछ ही लिया, कि आप चाहते तो मेरा ये रोग भी तो दूर कर सकते थे, रोग दूर कर देते तो ये सब करना ही नहीं पड़ता.” भक्त की बातें सुनकर प्रभु ने कहा, ”देखो माधव! मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता, इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की । जो प्रारब्ध होता है उसे तो भोगना ही पड़ता है। अगर उसे काटोगे तो इस जन्म में नहीं, लेकिन उसे भोगने के लिए फिर तुम्हें अगला जन्म लेना पड़ेगा और मैं नहीं चाहता कि मेरे भक्त को जरा से प्रारब्ध के कारण फिर अगला जन्म लेना पड़े। इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की लेकिन अगर फिर भी तुम कह रहे हो तो भक्त की बात भी नहीं टाल सकता। अब तुम्हारे प्रारब्ध में 15 दिन का रोग और बचा है, इसलिए 15 दिन का रोग तू मुझे दे दे। जिसके बाद प्रभु जगन्नाथ ने अपने भक्त माधव दास के बचे हुए 15 दिन का रोग स्वयं ले लिया। यही वजह है कि भगवान जगन्नाथ आज भी बीमार होते हैं।
कुछ साल पहले कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले लिया था । उस वक्त हर किसी को 14 दिन क्वारंटीन यानी सेल्फ आइसोलेशन में रहने के लिए बोला गया था। डॉक्टर और विशेषज्ञों की माने तो संक्रामक बीमारियों का चक्र तोड़ने के लिए 14 दिन का समय लगता है । यही कारण है कि 14 दिन क्वारंटीन किया जाता था ताकि संक्रमण दूसरों में न फैले. भगवान जगन्नाथ भी इन्ही नियमों का पालन करते हैं वो भी आज से नहीं सदियों से। इसी से साबित होता है कि हमारे सनातन धर्म के पूर्व ऋषि-मुनि और संतों को सिर्फ भक्ति ही नहीं स्वास्थ्य संबंधित विषयों का भी भरपूर ज्ञान था।