धर्म संवाद / डेस्क : सनातन धर्म में सभी देवी-देवताओं के वाहन हैं, माँ दुर्गा का वाहन शेर है. वही नंदी को भोलेनाथ का वाहन माना जाता है. हर शिव मंदिर में भोलेनाथ की मूर्ति के सामने बैल रूपी नंदी जरुर विराजित होते हैं. नंदी को भगवान शिव के प्रमुख गणों में से एक माना जाता है.धार्मिक मान्यता है कि नंदी के कानो में मनोकामनाएं बता देने से शिव जी उसे सुन के भक्तों की मनोकामनाएं पुरे हो चुके हैं.चलिए जानते हैं नंदी कैसे बने महादेव के वाहन.
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पौराणिक कथा के अनुसार, एक ब्रह्मचारी ऋषि थे. उनका नाम था शिलाद. उन्हें भय होने लगा कि उनकी मृत्यु के बाद उनका वंश समाप्त हो जाएगा. इस भय के चलते उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए महादेव की कठोर तपस्या शुरू की. तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने शिलाद ऋषि को दर्शन दिए और वर मांगने को कहा. तब शिलाद ऋषि ने शिव से कहा कि उसे ऐसा पुत्र चाहिए, जिसे मृत्यु ना छू सके और उस पर आपकी कृपा बनी रहे. भगवान शिव ने शिलाद को पुत्र का आशीर्वाद दिया और वहां से चले गए.
अगले ही दिन जब ऋषि शिलाद पास के खेतों से गुजर रहे थे तो उन्हें वहां एक नवजात बच्चा मिला. तभी भगवान शिव की आवाज आई और उन्होंने कहा शिलाद यही है, तुम्हारा पुत्र. उन्होंने उसका नाम नंदी रखा. वह उसे अपने साथ अपने घर ले आए और उसका लालन-पालन करने लगे. देखते देखते नंदी बड़ा हो गया. एक दिन ऋषि शिलाद के घर दो सन्यासी आए. ऋषि शिलाद की आज्ञा से नंदी ने दोनों सन्यासियों का खूब आदर सत्कार किया. उन्हें भोजन कराया. सन्यासियों ने ऋषि शिलाद को दीर्घ आयु का आशीर्वाद दिया, लेकिन नंदी के लिए एक शब्द भी नहीं कहा. सन्यासियों द्वारा ऐसा किए जाने पर ऋषि शिलाद को आश्चर्य हुआ. शिलाद ने जब सन्यासियों से जब पूछा तो तब सन्यासियों ने बताया कि आपके इस पुत्र की आयु बहुत कम है. इसलिए, हमने इसे कोई आशीर्वाद नहीं दिया. नंदी ने सन्यासियों की यह बात सुन ली.
ऋषि शिलाद चिंतित हो गए, तब नंदी ने उन्हें समझाते हुए कहा कि पिताजी आपने मुझे शिव जी की कृपा से पाया है, तो वो ही मेरी रक्षा करेंगे. इसके बाद नंदी ने शंकर जी के निमित्त कठोर तप किया. इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और नंदी को अपना प्रिय वाहन बना लिया. इसके बाद से भगवान शिव के साथ नंदी की भी पूजा की जाने लगी.
संस्कृत में ‘नन्दि’ का अर्थ है प्रसन्नता या आनंद . नंदी को शक्ति-संपन्नता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है. नंदी शिव जी के निवास स्थान कैलाश के द्वारपाल भी माने जाते हैं. जिन्हें प्रतीकात्मक रूप से बैल के रूप में शिव मंदिर में प्रतिष्ठित किया जाता है. समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला तो शिवजी ने उस को पीकर संसार की रक्षा की थी. इस दौरान विष की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गई थीं.जिसे नंदी ने भी पी लिया. नंदी का ये प्रेम और लगाव देख शिव जी ने नंदी को सबसे बड़े भक्त की उपाधी दी. साथ ही ये भी कहा कि लोग शिव जी की पूजा के साथ उनकी भी अराधना करेंगे.