धर्म संवाद / डेस्क : हिन्दू धर्म में हर देवी-देवता के अपने अपने वाहन हैं जिनकी वे सवारी करते हैं। भगवान शिव का वाहन बैल है जिनका नाम है नंदी।भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ है। उसी तरह माँ दुर्गा का वाहन शेर है। शेर पर सवार होने के कारण मां दुर्गा को शेरावाली कहते हैं। आपको बता दे शेर आक्रामकता और शौर्य का प्रतीक है। शेर की दहाड़ को मां दुर्गा की ध्वनि की तरह माना जाता है जिसके आगे संसार की बाकी सभी आवाजें कमजोर लगती हैं। शेर के माँ दुर्गा की सवारी बनने के पीछे एक पौराणिक कथा है।
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पौराणिक कथा के मुताबिक़,जब देवी पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए ताप किया था तब उनका शरीर गोरा से सांवला पड़ गया था। एक दिन भगवान शिव और पार्वती कैलाश पर्वत पर बैठकर हंसी मजाक कर रहे थे, तभी शिव जी ने मां पार्वती को काली कह दिया। शिव जी की ये बात पार्वती जी को चुभ गई और वो एक बार फिर अपने गौर रूप को पाने के लिए तपस्या करने में लीन हो गईं।
जब वे वन में तपस्या कर रही थीं, तभी एक भूखा शेर मां को खाने के उद्देश्य से वहां पहुंचा। लेकिन वह शेर चुपचाप वहां बैठकर तपस्या कर रही माता को देखता रहा। माता की तपस्या में सालों बीत गए और मां पार्वती के साथ शेर वहीं बैठा रहा । मां ने जिद कर ली थी कि जब तक वह गोरी नहीं हो जाएंगी तब तक वह यहीं तपस्या करेंगी। तब शिवजी वहां प्रकट हुए और देवी को गोरा होने का वरदान देकर चले गए। फिर माता ने नदी में स्नान किया और बाद में देखा की एक शेर वहां चुपचाप बैठा माता को ध्यान से देख रहा है। जब देवी पार्वती को जब यह पता चला कि यह शेर उनके साथ ही तपस्या में यहां सालों से बैठा रहा है तो माता ने प्रसन्न होकर उसे वरदान स्वरूप अपना वाहन बना लिया।
दूसरी कथा के अनुसार कार्तिकेय ने देवासुर संग्राम में दानव तारक और उसके दो भाई सिंहमुखम और सुरापदमन को पराजित किया था। सिंहमुखम ने अपनी पराजय पर कार्तिकेय से माफी मांगी जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने उसे शेर बना दिया और मां दुर्गा का वाहन बनने का आशीर्वाद दिया।