धर्म संवाद / डेस्क : फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। कहते हैं इसी दिन भगवान शिव और माता पारवती का विवाह हुआ था। इस दिन व्रत रख कर अगर शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाय तो भगवान शिव की विशेष कृपा मिलती है। मंदिरों में जलाभिषेक का कार्यक्रम दिन भर चलता है। चलिए जानते हैं महाशिवरात्रि के पर्व के पीछे की कहानी।
यह भी पढ़े : Mahashivratri 2024: कब है महाशिवरात्रि? जानिए सही डेट और शुभ मुहूर्त
बताया गया है कि फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे। शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था। ऐसा शिवलिंग जिसका ना तो आदि था और न अंत। एक और कथा यह भी है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग विभिन्न 64 जगहों पर प्रकट हुए थे। उनमें से हमें केवल 12 जगह का नाम पता है। इन्हें हम 12 ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं।
मान्यता यह भी है कि इस दिन शिव-पारवती की शादी हुई थी। मान्यता है कि महाशिवरात्रि को शिवजी के साथ शक्ति स्वरूपा देवी पार्वती की शादी हुई थी। इसी दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। शिव जो वैरागी थी, वह गृहस्थ बन गए। इसलिए रात में शिव जी की बारात निकाली जाती है। रात में पूजा कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेल पत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है। माना जाता है कि शिवरात्रि के 15 दिन पश्चात होली का त्योहार मनाने के पीछे एक कारण यह भी है।