धर्म संवाद / डेस्क : हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्राचीन परंपरा है, जो पूरी दुनिया में व्यापक रूप से की जाती है. पूजा में अर्पित किए जाने वाले विभिन्न चढ़ावे जैसे फूल, फल, जल, बेलपत्र, दूध आदि का विशेष महत्व होता है, लेकिन एक पौधा है जिसे भगवान शिव को चढ़ाने से मना किया गया है, और वह है तुलसी. तुलसी हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र और पूजा योग्य माना जाता है, विशेष रूप से देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु से जुड़े धार्मिक संदर्भों में. फिर भी, तुलसी को भगवान शिव के पूजा में क्यों नहीं चढ़ाया जाता, इसके पीछे कुछ धार्मिक और सांस्कृतिक कारण हैं.
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कहते हैं तुलसीजी भगवान शिव को इसलिए नहीं चढ़ाई जाती क्योंकि वह शापित है। पौराणिक कथा के मुताबिक, पूर्व जन्म में तुलसी का नाम वृंदा था. वह जालंधर नाम के एक राक्षस की पत्नी थीं. जालंधर भगवान शिव का ही अंश था, लेकिन बुरे कर्मों के कारण उसका जन्म राक्षस कुल में हुआ था. उससे हर कोई बहुत परेशान था. वृंदा एक पतिव्रता पत्नी थीं और उनके तप से कोई भी राक्षस का वध नहीं कर पा रहा था.
राक्षस जालंधर की मौत के लिए वृंदा का पतिव्रत धर्म खत्म होने बेहद जरूरी था. असुरराज जालंधर का अत्याचार बढ़ने लगा तो जनकल्याण के लिए भगवान विष्णु ने राक्षस जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिव्रता धर्म को तोड़ दिया. जब वृंदा को यह जानकारी हुई कि भगवान विष्णु ने उनका पतिव्रता धर्म को तोड़ दिया तो उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया. वृंदा के श्राप से रुष्ट होकर विष्णु जी ने बताया कि वो उसका राक्षस जालंधर से बचाव कर रहे थे और उन्होंने वृंदा को श्राप दिया कि वो लकड़ी बन जाए.
इधर वृंदा का प्रतिव्रता धर्म नष्ट होने के बाद भगवान शिव ने राक्षस राज जालंधर की हत्या कर दी. इसके बाद वृंदा ने स्वंय का आत्मदाह किया और जहां उनका आत्मदाह हुअस वहां तुलसी का पौधा उग गया. कहा जाता है कि चूंकि तुलसी श्रापित हैं और शिव जी के द्वारा उनके पति की हत्या की गई थी इसलिए शिव पूजन में इनकी पूजा नहीं कि जाती.