भगवान कृष्ण को क्यों कहा जाता है साँवलिया सेठ

By Tami

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कृष्ण को क्यों कहा जाता है साँवलिया सेठ

धर्म संवाद / डेस्क : भगवान श्री कृष्ण को बहुत सारे नामों से बुलाया जाता है । उन्मे से एक नाम है “साँवलिया सेठ” । उनके हर एक नाम के पीछे कोई न कोई वजह होती ही है। उसी तरह इस नाम के पीछे भी एक कहानी मिलती है। चलिए जानते हैं मुरली मनोहर के साँवलिया सेठ कहलाने के पीछे की कथा।

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कहा जाता है श्री कृष्ण के परम मित्र सुदामा काफी निर्धन थे। बड़ी मुश्किल से उनका और उनके बच्चों का भरण पोषण हो पाता था। एक बार वे श्री कृष्ण से मिलने द्वारका पहुंचे। वहां उनके महल में छप्पन पकवान जब उनके सामने परोसे जाते हैं तो वे यह कहकर श्रीकृष्ण से भोजन करने से इनकार कर देता है कि उनकी पत्नी वसुंधरा और बच्चें भूखे होंगे। यह सुनकर उसी वक्त श्रीकृष्ण दूसरा रूप धारण करके सुदामा के गांव पहुंच जाते हैं और वहां जाकर वे सांवले शाह बन जाते हैं। 

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अचानक सुदामा जी के घर के बाहर एक बच्चा दौड़ते हुए कहता है कि पास के गांव के सांवलिया सेठ के घर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इसके लिए दस दिनों तक महायज्ञ किया जा रहा है। साथ ही दस दिनों तक आसपास के सभी नगरों में भंडारा किया जा रहा है। उसके बाद सुदामा जी के बच्चे भी वहाँ गए और साँवले सेठ के यहाँ जाकर भोजन ले आए। जब सुदामा जी द्वारका से वापस लौट रहे थे तो उन्हे भी पता चला कि कोई सांवलिया सेठ भंडारा करवा रहे हैं। सुदामा जी व्यक्ति को रोककर कहता है कि क्या पास के गांव में भी भोजन परोसा जा रहा है। सुदामा जी के सवाल पर व्यक्ति बोलता है-हां, आपके गांव में भी भंडारा किया जा रहा है। यह सुन सुदामा जी की आत्मा तृप्त हो गई। उन्हें अपने भूखे बच्चे और पत्नी की चिंता चित्त से हट गई। तब से ही भगवान श्री कृष्ण को साँवलिया सेठ कहा जाता है।

आपको बता दे किवदंतियों के अनुसार मीरा बाई सांवलिया सेठ की ही पूजा किया करती थी जिन्हें वह गिरधर गोपाल भी कहती थीं। मीरा बाई संतों की जमात के साथ भ्रमण करती थीं जिनके साथ श्री कृष्ण की मूर्तियां रहती थीं। दयाराम नामक संत की जमात के पास भी ऐसी ही मूर्तियां रहती थीं।  औरंगजेब की सेना भी उन मूर्तियों को धुंदने लगी थी तब उनकी सुरक्षा हेतु संत दयाराम ने इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर छिपा दिया।

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माना जाता है कि 1840 में मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर नामक ग्वाले को सपना आया की भादसोड़ा-बागूंड गांव की सीमा के छापर में भगवान की 4 मूर्तियां भूमि में दबी हुई हैं। जब उस जगह पर खुदाई की गई तो वहां से एक जैसी 4 मूर्तियां निकली। देखते ही देखते ये खबर सब तरफ फैल गयी और आस-पास के लोग एकत्रित होने लगे। फिर उन चारों में से सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा ग्राम ले जाई गई, भादसोड़ा में प्रसिद्ध गृहस्थ संत पुराजी भगत रहते थे। उनके निर्देशन में उदयपुर मेवाड़ राज-परिवार के भींडर ठिकाने की ओर से सांवलिया जी का मंदिर बनवाया गया।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .