धर्म संवाद / डेस्क : हिंदू धर्म में त्रिदेव को सबसे ज्यादा शक्तिशाली माना जाता है। त्रिदेव में ब्रम्हा, विष्णु और महेश आते हैं। भगवान विष्णु इस ब्रम्हांड के पालनहार हैं और भगवान शिव को शृष्टि के संहारक माना जाता है। दोनों एक दूसरे के परम भक्त हैं। परंतु उन दोनों में भी महायुद्ध हुआ है। चलिए जानते हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि दो भक्तों को अपने अपने आराध्य से लड़ना पड़ गया।
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एक दिन माता लक्ष्मी अपने पिता समुद्र देव से मिलने गई तो उन्होने देखा कि उनके पिता काफी चिंतित थे । उन्होने उनसे उनकी चिंता का कारण पूछा तो समुद्र देव ने कहा, मै तुम्हारे लिए अति प्रसन्न हूँ की तुम्हारा विवाह श्री हरी विष्णु के साथ हुआ है लेकिन तुम्हारी पाँच बहने सुवेषा, सुकेशी समिषी, सुमित्रा और वेधा भी मन ही मन विष्णु देव को अपना पति मन चुकीं हैं और उनको पाने के लिए कठोर तपस्या कर रहीं हैं। मै क्या करूँ मुझे यह समझ नहीं या रहा।
यह बात सुनकर माता लक्ष्मी भी अत्यंत चिंतित हो गईं, और वैकुंठ धाम लौटकर उन्होंने भगवान विष्णु से इस बारे में पुछा तो भगवान विष्णु ने कहा कि मेरे भक्तों का मेरे हृदय में एक विशेवश स्थान है जो मुझे जिस रूप में चाहेगा मैं उन्हे उसी रूप में मिलूँगा। अगर किसी भक्त की तपस्या पूर्ण हुई तो मुझे उन्हे वरदान भी देना ही पड़ेगा। देवी लक्ष्मी ने कहा – ये संसार और मेरे भक्त भी मुझे प्रिए है किन्तु मेरे हृदय मे केवल आप हैं । मुझे आपका प्रेम सम्पूर्ण स्वरूप मे ही चाहिए यदि ये संभव नहीं है तो आप मुझे अपने हृदय से निकाल दीजिये।
यहाँ दूसरी तरफ देवी लक्ष्मी की पांचों बहनों की तपस्या पूर्ण हुई तो भगवान विष्णु ने उन्हे दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। तब उन पांचों बहनों ने भगवान विष्णु से विनती कर कहा कि आप हम पांचों बहनों के पति बन जाएँ और अपनी सारी स्मृतियों और इस संसार को भूलकर हमारे साथ ही पाताल लोक मे निवास करें। भगवान विष्णु ने भी उन्हे ये वरदान दे दिया और अपनी स्मृतियाँ और देवी लक्ष्मी के साथ –साथ पूरे संसार को भुलाकर उनके साथ ही पाताल लोक मे वास करने लगे।
भगवान विष्णु के चले जाने से संसार का संतुलन बिगड़ने लगा। माता लक्ष्मी भी बहुत व्याकुल हो गईं और भगवान शिव के पास गईं । तब भगवान शिव ने संसार का संतुलन पुनः स्थापित करने के लिए भगवान विष्णु को पाताल से वापस लाने का निश्चय किया। उन्होने वृषभ अवतार लेकर पाताल लोक पर आक्रमण कर दिया।उनकी स्मृतियाँ वे भूल चुके थे इसलिए भगवान शिव को देख कर भगवान विष्णु पहचान नहीं पाए। वे अत्यंत क्रोधित हुए और महादेव के साथ युद्ध करने लगे।
भगवान विष्णु ने महादेव पर अनेकों अस्त्रों से प्रहार करना आरंभ कर दिया । महादेव भी अपने वृसभ स्वरूप मे उनके सभी प्रहारों को विफल करते गए । दोनों के युद्ध बिलकुल बराबरी का चल रहा था।
ये युद्ध अनेकों सालों तक चलता रहा किसी को भी इस युद्ध की समाप्ती का उपाय समझ नहीं आ रहा था। भगवान विष्णु का क्रोध इतना बढ़ गया की उन्होने ने अपने नारायण अश्त्र से महादेव के ऊपर प्रहार कर दिया और महादेव ने उनपर पसूपतस्त से प्रहार कर दिया। इस कारण दोनों ही एक दूसरे के अस्त्रों मे बांध गए।
यह सब देख कर गणेश जी माता लक्ष्मी की उन पांचों बहनों के पास गए और बोले – भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों ही एक दूसरे के अस्त्रों मे बंध गए हैं यदि भगवान विष्णु की स्मृति वापस नहीं आई तो ये दोनों अनंत काल तक ऐसे ही बंधे रहेंगे और इस समस्त शृष्टि का सर्वनाश हो जाएगा ।
यह सुनकर उन पांचों बहनों को अपने भूल का एहसास हुआ और उन्होंने युद्ध क्षेत्र में पहुँच कर भगवान विष्णु को हम हमारे सारे वचनो से मुक्त करते हैं। उनके वचन से मुक्त होते हि भगवान विष्णु की सारी स्मृति वापिस आ जाती है और फिर उन्होने भगवान शिव को पहचान लिया और अपने अस्त्रों के बंधन से मुक्त कर दिया । भगवान शिव ने भी उन्हे मुक्त कर अपने साकार रूप मे आ गए । और फिर भगवान शिव और भगवान विष्णु को लेकर वैकुंठधाम आ गए ।