धर्म संवाद / डेस्क : महाभारत की कई कथाएँ ऐसी हैं जो हर किसी को याद है पर साथ ही कुछ कथाएँ ऐसी भी हैं जिसके बारे में हर कोई नहीं जानता है। उन्ही में से एक कहानी है गदाधारी भीम की । महाभारत में एक समय ऐसा आया था जब भीम अपने बड़े भाई युधिष्ठिर का हाथ जलाना चाह रहे थे। जी हाँ पाँचों पांडव अपने बड़े भाई की बहुत इज्ज़त करते थे। उन सब में बहुत स्नेह था। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि भीम इतना बड़ा कर्म करने जा रहे थे। चलिए जानते हैं।
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कथाओं के अनुसार, युधिष्ठिर अपना सब कुछ कौरवों से जुए में हार गए थे। आखिर में युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगा दिया था और वे उनको भी हार गए थे। इसके बाद कौरवों ने द्रौपदी का भरी सभा में चीरहरण और अपमान किया था। यह सब देखकर भीम आगबबूला हो उठे थे। उन्होंने युधिष्ठिर से कहा कि आपने जुए में जो धन हारा है, उससे मुझे क्रोध नहीं है, लेकिन द्रोपदी को आपने जो दांव पर लगाया है, यह बहुत ही गलत है। द्रोपदी अपमान करने के योग्य नहीं है, लेकिन आपके कारण ये दुष्ट कौरव उसे कष्ट दे रहे हैं यहीं और भरी सभा में अपमानित कर रहे हैं। जो मुझे बर्दाश नहीं।
भीम ने आगे कहा द्रोपदी की इस दशा का कारण आप हैं। आपके इन्ही हाथों ने द्रौपदी को हारा इसलिए मैं आपके दोनों हाथ जला डालूंगा। इतना ही नहीं भीम सहदेव से आग लाने को भी कहते हैं। भीम की यह बात सुनकर अर्जुन उन्हें समझाते हैं और कहते हैं कि युधिष्ठिर ने क्षत्रिय धर्म के अनुसार ही जुआ खेला है। इसमेंं इनका कोई दोष नहीं हैं। अर्जुन की बात सुनकर भीम का क्रोध शांत हो गया और वे बोले कि इस बात से मैं भी अनजान नहीं हूं, नहीं तो मैं बलपूर्वक इनके दोनों हाथ अग्नि में जला डालता।