धर्म संवाद / डेस्क : श्री राधा का नाम लेते ही मन में ख़ुशी और उमंग जाग उठती है। कहने को राधा एक नाम मात्र है लेकिन इन दो अक्षरों में समाहित है भक्ति, प्रेम और जीवन का यथार्थ। कृष्ण भक्ति में डूबे लोग भी राधा नाम जपते हैं। श्री कृष्ण स्वयं कहते हैं- जिस समय मैं किसी के मुख से ‘रा’ सुनता हूं, उसे मैं अपना भक्ति प्रेम प्रदान करता हूं और धा शब्द के उच्चारण करनें पर तो मैं राधा नाम सुनने के लोभ से उसके पीछे चल देता हूं। चलिए जानते हैं राधा नाम का अर्थ और महत्त्व।
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संस्कृत में राधा शब्द के अनेक अर्थ होते है। ‘राध’ धातु से ‘राधा’ शब्द बनता है। संस्कृत में जितने शब्द है वो धातु से बनते है। आराधना (उपासना) अर्थ में ‘राध’ धातु होती है उससे ‘आ’ प्रत्यय होकर दो अर्थ हो जाता है। पहला कर्म में ‘आ’ प्रत्यय होता है और दूसरा करण में ‘आ’ प्रत्यय होता है। तो दोनों में अर्थ बदल जाता है। इसलिए राधा-रानी के बारे में दो बातें विरोधी शास्त्रों-वेदों में पाई गई हैं। कर्म में ‘आ’ प्रत्यय होने से आराध्य (जिसकी सब आराधना करे) अर्थ होता है। अर्थात् जिसकी उपासना ब्रह्म श्री कृष्ण करें उसका नाम राधा। वेद में कहा गया राधोपनिषद “कृष्णेन आराधते इति राधा” अर्थात् श्री कृष्ण जिसकी आराधना करें उस तत्व का नाम राधा। दूसरा अर्थ है करण में ‘आ’ प्रत्यय होने से आराधिका (भगवान की आराधना करने वाली) अर्थ होता है। अर्थात् कृष्ण की आराधना करने वाली वो राधा।
शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति राधे-राधे बोलता है नकारात्मकता, बुरी शक्तियां, आसुरी प्रवृत्ति उस व्यक्ति से दूर रहते हैं। राधे-राधे बोलने वाले व्यक्ति का मन शांत रहता है। किसी भी प्रकार की चिंता उसे घेर नहीं पाती हैसाथ ही उसे मानसिक पीड़ा से मुक्ति मिलती है। राधे-राधे बोलने से एकाग्रता बढती है। राधे-राधे बोलने वाले व्यक्ति को पाप कर्मों से मुक्ति मिल जाती है। इससे न सिर्फ राधा रानी का आशीर्वाद मिलता है बल्कि श्री कृष्ण की कृपा और उनका साथ भी मनुष्य के साथ बना रहता है।
शास्त्रों में राधा नाम को अपने आप में एक मंत्र बताया गया है ऐसे में जिस भी कामना के साथ इस नाम को जपा जाए वह पूरी होती है। राधे-राधे बोलने वाले व्यक्ति की हर बाधा दूर होती है और उसका भविष्य उज्जवल बनता है।