धर्म संवाद / डेस्क : हर साल कामाख्या देवी मंदिर में अंबुबाची पर्व मनाया जाता है और अंबुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। यह पर्व चार दिन तक मनाया जाता है । इस पर्व को मानसून उत्सव की तरह मनाया जाता है। इस दौरान पराशक्तियां जागृत रहती हैं और दुर्लभ तंत्र सिद्धियों की प्राप्ति आसानी से होती है। माना जाता है कि इस समय देवी कामाख्या रजस्वला होती हैं। इसी वजह से मंदिर बंद रखा जाता है।
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कामाख्या देवी मंदिर असम के गुवाहाटी में एक पहाड़ी पर बना है। इस मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। शक्तिपीठ उन स्थानों को कहा जाता है जाता माता सती के अंश गिरे थे। कहा जाता है कि कामाख्या मंदिर वो स्थान है जहां माता की योनि गिरी थी। यही कारण है कि मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं है। वहाँ योनि मौजूद है जिसकी पूजा होती है। उस योनि से निरंतर एक जल की पतली धारा बहती रहती है। इसलिए मान्यता है कि यहाँ माता कामाख्या साक्षात निवास करती हैं। हर साल जून के मध्य या अंत समय में माता को मासिक धर्म होता है । जिस वजह से मंदिर को बंद रखा जाता है। कोई पूजा –अर्चना नहीं की जाती। इस दौरान माता के आस-पास सफ़ेद वस्त्र बिछा दिए जाते हैं,तीन दिन बाद जब मंदिर के पट खोले जाते हैं तब यह वस्त्र पूरा लाल मिलता हैं।उस वस्त्र को बाद में प्रसाद के तौर पर भक्तों में बाँट दिया जाता है।
अम्बुबाची शब्द अम्बु और बाची दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है जिसमें अम्बु का अर्थ है पानी और बाची का अर्थ है उतफूलन। यह शब्द स्त्रियों की शक्ति और उनकी जन्म क्षमता को दर्शाता है। इस वक्त तांत्रिक शक्तियां जागृत होती हैं। कुछ तांत्रिक बाबा भी इन चार दिनों के दौरान ही सार्वजनिक रूप से दिखाई देते हैं। साल के बाकी दिनों में वे एकांत में रहते हैं। । कामाख्या देवी शक्तिपीठ में देवी मां 64 योगनियों और दस महाविद्याओं के साथ विराजित हैं। भुवनेश्वरी, बगला, छिन्न मस्तिका, काली, तारा, मातंगी, कमला, सरस्वती, धूमावती और भैरवी एक ही स्थान पर विराजमान हैं।
अंबुबाली मेले के समय मंदिर परिसर में तरह-तरह के धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस दौरान भजन-कीर्तन, तांत्रिक अनुष्ठान और विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल हैं। मेले के दौरान भक्तों के लिए भंडारे का भी आयोजन किया जाता है।