भगवान श्री कृष्ण के कई नाम है। उन्मे स एक है मोर मुकुटधारी ।

भगवान श्री कृष्ण अपने मुकुट में मोर पंख लगाते थे, इसलिए उन्हे मोरमुकुटधारी कहा जाता है।

माता यशोदा जब भी कान्हा का श्रृंगार करती थीं उनके मुकुट पर हमेशा मोर पंख का लगाती थीं।

ज्योतिष मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की कुंडली में कालसर्प दोष था।

कालसर्प दोष का प्रभाव कम करने के लिए भी भगवान कृष्ण मोरपंख को सदा साथ रखते थे।

कहते ये भी हैं कि एक मोर ने त्रेतायुग में माता सीता को खोजने में श्रीराम की मदद की थी।

मोर ने उड़ते उड़ते अपना एक एक मोर पंख गिरा कर श्रीराम को रास्ता दिखाया था।

मोर के पंख एक विशेष समय में एवं एक विशेष ऋतु में ही गिरते हैं। मोर यदि अपनी इच्छा विरुद्ध पंखों को बिखेरेगा, तो उसकी मृत्यु हो जाती है। 

उस मोर के साथ भी ऐसा ही हुआ। तब श्रीराम ने उस मोर को कहा कि वे इस जन्म में उसके इस उपकार का मूल्य तो नहीं चुका सकते परंतु अपने अगले जन्म में उसके सम्मान में पंख को अपने मुकुट में धारण करेंगे

अगले जन्म में कृष्ण रूप में उन्होंने ऐसा ही किया।