हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ काम को करने से पहले माथे पर तिलक लगाया जाता है.
जब भी माथे पर तिलक लगाया जाता है, उसके ऊपर अक्षत यानी कि चावल अवश्य लगाया जाता है.
ऐसी मान्यता है कि तिलक के साथ अक्षत लगाने से तिलक को पूर्ण माना जाता है.
तिलक के साथ चावल लगाने का कारण ये भी बताया जाता है कि चावल को सबसे शुद्ध अन्न माना जाता है.
चावल को अक्षत भी कहा जाता है और इसका मतलब ही है कि कभी नाश नहीं होने वाला, इसलिए किसी भी कार्य की सफलता के लिए चावल का इस्तेमाल किया जाता है.
तिलक पर चावल का प्रयोग उन दिव्य प्रभावों को बढ़ाता है जो ग्रहों की गति की वजह से संचालित होते हैं।
मुख्य रूप से चावल सूर्य की ऊर्जा को केंद्रित करने और पूरे शरीर में फैलाने में मदद करता है।
सूर्य की उग्र प्रकृति के साथ चंद्रमा को ऊर्जा को भी नियंत्रित करने के लिए माथे के बीचो बीच तिलक के साथ अक्षत लगाना जरूरी माना जाता है। यह चंद्रमा की सोलह कलाओं को नियंत्रित करता है।