हनुमान जी की तरह ही भगवान शिव का भी पंचमुखी अवतार है जिसका वर्णन चार वेदों में से एक यजुर्वेद में मिलता है।

कहा जाता है कि भगवान शिव के पांच मुख में चार मुख चारों दिशाओं में और एक मध्य में है।

भगवान शिव के पश्चिम दिशा का मुख सद्योजात बालक के समान स्वच्छ, शुद्ध व निर्विकार हैं।

उत्तर दिशा का मुख वामदेव अर्थात विकारों का नाश करने वाला। दक्षिण मुख अघोर अर्थात निन्दित कर्म करने वाला।

वहीं, शिव जी के पूर्व मुख का नाम तत्पुरुष है जिसका अर्थ है अपनी आत्मा में स्थित रहना।

ऊर्ध्व मुख का नाम ईशान है जिसका अर्थ होता है जगत का स्वामी।

शिव जी का अघोर मुख इस बात की ओर इशारा करता है कि जगत में निन्दित कर्म करने वाला भी शिव की कृपा से निन्दित कर्म को शुद्ध बना लेता हैं।

भगवान शिव के पश्चिम मुख का पूजन पृथ्वी तत्व के रूप में, उत्तर मुख का पूजन जल तत्व के रूप में, दक्षिण मुख का तेजस तत्व के रूप में और पूर्व मुख का पूजन वायु तत्व के रूप में किया जाता है.

भगवान शिव के ऊध्र्वमुख का पूजन आकाश तत्व के रूप में किया जाता है. इन पांच तत्वों का निर्माण भगवान सदाशिव से ही हुआ है.