पूजा पाठ में प्रसाद के रूप में पंचामृत या चरणामृत दिया जाता हैं.

चरणामृत भगवान के चरणों का प्रसाद यानी चरणों का अमृत माना जाता है।

इस पवित्र जल को सबसे पहले मस्तक पर लगाया जाता है और फिर इसका सेवन किया जाता है।

शास्त्रों में बताया गया है कि अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्। विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।।’

अर्थात एक ऐसा अमृत है, जिसे पीने से मनुष्‍य को अकाल मृत्‍यु का भय नहीं रहता। यह सभी पापों का नाश कर देता है।

साथ ही भगवान विष्‍णु के चरणों को धोने वाले जल को पीने से व्‍यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

चरणामृत का जल का सेवन करने से कभी भी कैंसर नहीं होगा और न ही किसी भी प्रकार का अन्य रोग।

चरणामृत को तांबे के कलश में रखा जाता है और आयुर्वेद के अनुसार तांबे में अनेक रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है।