श्रीमद्भगवद्‌गीता हिंदू धर्म का पवित्र धार्मिक ग्रंथ है. गीता के ये 5 श्लोक बेहद ही महत्वपूर्ण है

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌

भावार्थ- भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि इस धरती पर जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का बढ़ने लगता है तब-तब वे अवतरित होते हैं.

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम् धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे

भावार्थ- गीता के इस श्लोक का भावार्थ है कि साधु और सज्जनों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण हर युग में जन्म लेते हैं. इसके अलावा दुष्टों के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए श्रीकृष्ण प्रत्येक युग में जन्म लेते हैं.

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः

भावार्थ-  आत्मा को ना तो शस्त्र काट सकता है और ना ही अग्नि जला सकती है. साथ ही आत्मा को ना तो पानी गला सकता है और ना ही हवा सुखा सकती है.

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि

भावार्थ-  व्यक्ति को सिर्फ कर्म पर अधिकार है. इसलिए मनुष्य को चाहिए कि फल की चिंता किए बिना कर्म करता रहे.

जो व्यक्ति फल की अभिलाषा से कर्म करता है वह ना तो उचित कर्म कर पाता है और ना ही उस फल को प्राप्त कर पाता है.