धर्म संवाद / डेस्क : मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली उत्पन्ना एकादशी हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र मानी जाती है। इसे भगवान विष्णु को समर्पित माना गया है और धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी तिथि पर देवी एकादशी का प्राकट्य हुआ था। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ देवी एकादशी की विशेष आराधना की जाती है।
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कहा जाता है कि इस व्रत को करने से—
- जीवन के कष्ट दूर होते हैं
- घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है
- पापों का क्षय होता है
- मनुष्य के जीवन में शुभता का प्रवेश होता है
उत्पन्ना एकादशी का धार्मिक महत्व
वैदिक शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि जब अधर्म का प्रभाव बढ़ने लगा था, तब विष्णु भगवान की आज्ञा से देवी एकादशी का जन्म हुआ। देवी ने अपनी शक्ति से दैत्यों का विनाश किया और संसार में धर्म की स्थापना की। इसी वजह से यह एकादशी धर्म विजय और संकट मुक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
उत्पन्ना एकादशी की पूजा विधि
इस दिन पूजा-व्रत का विशेष विधान बताया गया है। पूजा इस तरह करें:
1. प्रातः स्नान और संकल्प
सूर्य उदय से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प लें—
“मैं भगवान विष्णु की कृपा और पापों के क्षय के लिए यह व्रत कर रहा/रही हूँ।”
2. पूजा और आराधना
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
पीले फूल, तुलसी दल, धूप-दीप और प्रसाद अर्पित करें।
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
3. व्रत कथा का श्रवण
इस व्रत की कथा सुनना या पढ़ना पूजा का महत्वपूर्ण भाग माना गया है। मान्यता है कि कथा का श्रवण सभी बाधाएँ दूर करता है और रुके हुए कार्यों को सफल बनाता है।
4. उपवास और परायण
अधिकतर भक्त निर्जल व्रत रखते हैं, लेकिन सामर्थ्य के अनुसार फलाहार भी लिया जा सकता है।
अगले दिन पारण कर व्रत पूर्ण किया जाता है।
उत्पन्ना एकादशी के लाभ
शास्त्रों और पुराणों में इस व्रत के अनेक लाभ बताए गए हैं—
- रोग और संकट दूर होते हैं
- आर्थिक स्थिति में सुधार आता है
- मन में शांति और सकारात्मकता बढ़ती है
- अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव कम होते हैं
- जीवन में शुभ अवसर आने लगते हैं
इस व्रत को “सभी एकादशियों की जननी” कहा जाता है, इसलिए इसका फल भी अत्यंत शुभकारी माना गया है।
