धर्म संवाद / डेस्क : माता छिन्नमस्ता या ‘छिन्नमस्तिका’ दस महाविद्यायों में से एक हैं। इन्हे छठवा महाविद्या माना जाता है। पंचांग के अनुसार, बैशाख महीने में छिन्नमस्ता जयंती मनाई जाती है। वहीं, गुप्त नवरात्रि में भी मां छिन्नमस्ता की पूजा-उपासना की जाती है। मां छिन्नमस्तिके के गले में सर्पमाला और मुंडमाल सुशोभित है। खुले केश, आभूषणों से सुसज्जित हैं। इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं, जिन्हें वह रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं। इनके गले से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं।इनके इस रूप के पीछे एक पौराणिक कथा है। चलिए जानते हैं।
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पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती मंदाकनी नदी में अपनी सहेलियों के संग स्नान-ध्यान कर रही थी। उसी समय मां की सहचरियों को बहुत भूख लगी। भूख की पीड़ा के चलते दोनों सहचरियों का चेहरा मलीन हो गया। जब दोनों को भोजन हेतु कुछ नहीं मिला, तो उन्होंने माता से भोजन की व्यवस्था करने की प्रार्थना की। लेकिन माता ने दोनों की बात को अनसुना कर दिया। उसके बाद दोनों सहचरियों ने माता से कहा कि मां तो अपने शिशु का पेट भरने के लिए अपना रक्त तक पिला देती है। परंतु आप हमारी भूख मिटाने के लिए कुछ भी नहीं कर रही हैं।
अपनी सहेलियों की बात सुनकर मां पार्वती को क्रोध आ जाता है और नदी से बाहर आकर खड्ग से अपने सिर को काट देती हैं, जिससे उनके धड़ से रक्त की तीन धाराएं निकलती हैं।दो धाराएं दोनों सहचरियों के मुंह में गिरती हैं। तीसरी धारा मां के स्वयं के मुख में गिरती है। इससे सभी देवताओं के बीच कोहराम मच जाता है। जिसके बाद भगवान शिव कबंध का रूप धारण कर देवी के प्रचंड रूप को शांत करते हैं । देवी के इस रूप का नाम छिन्नमस्तिका या छिन्नमस्ता पड़ा।
छिन्नमस्ता जीवन देने वाली और जीवन लेने वाली देवी है। व्याख्या के आधार पर, उसे यौन आत्म-नियंत्रण का प्रतीक और यौन ऊर्जा का अवतार दोनों माना जाता है। वे मृत्यु, अस्थायीता और विनाश के साथ-साथ जीवन, अमरता और मनोरंजन का भी प्रतिनिधित्व करती है। वे एक महत्वपूर्ण तांत्रिक देवी हैं, जो गूढ़ तांत्रिक साधकों के बीच प्रसिद्ध और पूजी जाती हैं। मां चिंताओं को हर लेती हैं। ऐसी मान्यता है कि माता के दरबार में सच्ची श्रद्धा और भक्ति से जाने वाले भक्तों की मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। छिन्नमस्ता कामदेव और उनकी पत्नी राति पर युद्ध की मुद्रा में खड़ी है । जो आम तौर पर मैथुन में लगे होते हैं। माता छिन्नमस्ता “आमूल परिवर्तन की मूर्ति, एक महान योगिनी” हैं। वह सार्वभौमिक संदेश देती है कि सारा जीवन जीवन के अन्य रूपों से कायम है, और सृजन की निरंतरता के लिए विनाश और बलिदान आवश्यक हैं।
माता छिन्नमस्ता का एक मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में स्थित है। इस मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है। यहाँ जो भी सच्चे मन से माता की आराधना करता है उसके सारी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं।